हमने हरजाई क्या कहा,तुम बुरा मान गये
चलो अच्छा हुआ, खुदी को पहचान गये
तुम्हारी लड़ाई रकीबों1 से थी, तुम जाते—
जाते , क्यों बीच में मुझे सान गये
बार-बार अपने शिकवे की बात न करो
तुम्हारी बातों में है आग दबी,जान गये
आखिरकार पता चल ही गया,साहिबे-खाना2
तुमसे रूठकर रहने क्यों कबरिस्तान गये
बहुत ढूँढ़ा, कोई तो मिले जो हमको समझे
मगर,ढूँढ़कर भी न कोई ऐसे इन्सान मिले
- प्रतिद्वन्दियों 2.घर का मालिक
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