Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तुम कविता कुछ ऐसी लिखो

 


तुम कविता कुछ ऐसी लिखो

 

लोग  कहते  हैं ,बदल रहा है युगपत

युग  स्थितियों  से  प्रेरित होकर

तुम  कविता  कुछ  ऐसी  लिखो

जो विविध जाति-धर्मों के लोगों के

जीवन  अंधकार का दीप बन जले

जिसकी  ताप सबों को महसूस हो

मगर   कहीं   आग   निकले

तुम  कविता  कुछ  ऐसी  लिखो

 

दर्शन की शिखा मंद होती जा रही है

हवा   में   कोई  बीज  मत  बोओ

जिस  कविता  को पढ़कर निबल भी

फ़ावड़े   उठा  ले , मगर  याद  रहे

किसी   निरीह  का   लहू   बहे

तुम   कविता   कुछ  ऐसी   लिखो

 

अहिंसा, जल्लादों –कायरों  का  अस्त्र है

जिससे  धरती - आकाश ,दोनों त्रस्त है

जलियाँवाला   बाग  के उन खंडहरों को

जहाँ   कोटि – कोटि  लोग   दफ़न  हैं

जिनकी  चिता  की  आग  तो बुझ गई

मगर  तलातल  अभी तक गरम है कैसे                    

उन्हें बताओ,तुम कविता कुछ ऐसी लिखो

 

                                                                                                                 

 

सकल संसार का इतिहास क्या है

गाँधी   का   उपवास  क्या   है

ईशा   क्रास   पर   क्यों  चढ़ा

वन-उपवन जिस शब्द से रहे हरा

और  राष्ट्र   को   मिले  सहारा

तुम  कविता  कुछ  ऐसी  लिखो

 

पद के लोलुप नेताओं की आरती मत उतारो

जिसने  देश  के  शहीदों के,कफ़न के टुकड़े-

टुकड़े  कर ,आपस  में  बाँट  लिया,जिसने

हमारे  मनीषियों  के  विचारों  के  शव को

बोटी- बोटी कर नोच लिया,जिसका पशु-मन

मंदिर  में  जाकर  भगवान  की  मूर्ति को

मानवीय       रक्त     से     लहलाया

उसे  अपने  शब्दों   में  मंडित  मत करो

तुम    कविता    कुछ    ऐसी    लिखो

 

याद रखो , कवि  के  मन  में  देवता

और   प्रेत  दोनों  बसते  हैं , जिससे

जग  का  भला  हो, ऐसा  शब्द  तुम

अपनी     कविता      में     डालो 

मानस  कमल  जो  खिला है,कंदर्प में

उसमें सौम्य,संगति और सार्थकता भरो

तुम   कविता   कुछ   ऐसी   लिखो 

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