Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तुम्हारी नजरों के तीर से वह खंजर टूटा

 

तुम्हारी  नजरों के तीर से वह खंजर टूटा

तुमने ली  अँगड़ाई  तभी वह समंदर टूटा


तुम्हारे हुस्न के धौत से खनक-खनक कर

सिसक-सिसक कर काला वहपत्थर टूटा


कैसे करे  आदमी पर, अब आदमी विश्वास

राहजन  बनके, मुसाफ़िर पर  राहवर टूटा


दर्मियाँ  केवल एक  रोटी का सवाल  था  

जो  उस दरिंदे  के हाथों उसका  सर टूटा


वह  बेघर ऐसे  नहीं हुआ, उठी  कौम की

आँधी  पहले, नींव  हिली, फ़िर  घर  टूटा


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