तुम्हारी यादों की स्मृति की बस्ती
फ़ैलकर अब आसमां हो गई
मन – निलय में नहीं समाती
हृदय की नीरवता के चरण चिह्न से
टकरा – टकराकर , टूट - टूटकर
अश्रु बन आँखों से झरने लगी
यह और कुछ नहीं, केवल स्फ़ुलिंग है
मेरे उस ज्वालामयी ज्वलन का, जो
अब तक मेरा भावी स्वप्न बनकर मेरे
पीड़ित अंतर की एकाकी शय्या पर सो रही थी
आज शत भावों से विह्वल होकर, विद्युत –सी
जलकर तुम्हारी याद दिलाने फ़िर से जल उठी
इसे चाहिए धवल,मनोहर,सुंदर,स्वच्छ
चन्द्रबिंब से अंकित एक निशीथ
और गा रहा शीतल पवन पुलकित
जो ले जा सके इसे धूल,धूम,कोलाहल
थकावट के उस पार , जहाँ शीतल-
जल से पूर्ण मंदगामी धारा है बहती
और सूंदरता,प्रीति- पाश में बँधी रहती
क्योंकि ये स्मृतियाँ,तुम्हारी प्रीति डोर से
मेरे उर को सपने में भी बाँधे रखती
रखकर अपना अधर, मेरे अधर पर
मुझे सीने से लगाये खींची सोई रहती
मेरे अरमानों के करवट पर व्यथा बन
जागती रहती, लहरों में प्यास भरी है
भँवर पात्र से है खाली, मुझसे कहती
जीवन संघर्ष चलता रहे, मैं विफ़ल, विकल
जीती रहूँ, मेरी आँखों के काले तारे में
तुम्हारा सुंदर मुकुर सा चित्र दिखलाती
मुझमें मादकता की लहर उठाकर
मेरे अंग - अंग में सिहरन भरती
अनंत में विचरती कादम्बिनी को दिखलाकर
मुझको अपने भुजपाश में सिमटने कहती
अब तुम्हीं कहो, जीवन का संचित सुख, जो
अभी तक केवल एक के काले तारे में
तुम्हारा सुंदर मुकुर सा चित्र दिखलाती
मुझमें मादकता की लहर उठाकर
मेरे अंग - अंग में सिहरन भरती
अनंत में विचरती कादम्बिनी को दिखलाकर
मुझको अपने भुजपाश में सिमटने कहती
अब तुम्हीं कहो, जीवन का संचित सुख, जो
अभी तक केवल एक सुंदर
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