Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तुमको चाहिये था बहाना,हमको सताने के लिये

 

तुमको  चाहिये था बहाना,हमको सताने के लिये

हम  भी  बैठे हैं ,तुम्हारा सितम उठाने के लिये


करते  भी  क्या, रोजे-मशहर1 में  हो  भी आया

हमको, तो  कदम  चल  पड़ा  मैखाने  के लिये


शमे–महफ़िल2 होके  भी  महफ़िल से दूर रहे हम

तुम ,गैर  को  ढूँढ़ती  रही ,जी बहलाने के लिये


तुम्हारी चाहत थी,किस्सा-ए-गम का सुनाऊँ तुमको

हंगामें-नज-अ3 में खबर तो दिया था आने के लिये


मुद्दत  से  सोई  पड़ी  थी  दिल  की बस्ती,चला

आया  था, तेरी  मुहब्बत  से उसे जगाने के लिये



  1. प्रलय के दिन 2.महफ़िल का रौनक 3.मृत्यु के समय


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