तुमको जवां रात न कहूँ , तो और क्या कहूँ
हूर को हूर न कहूँ , तो और क्या कहूँ
तुम्हारी ये आँखें बड़ी कातिल हैं सनम
इन्हें कातिल न कहूँ , तो और क्या कहूँ
हजारों दीये आरजुओं के एक संग बुझ गये
उसे बेरहम न कहूँ , तो और क्या कहूँ
जन्नते तसवीर हो तुम, मेरे ख़्वाब की
तुमको खुदा न कहूँ , तो और क्या कहूँ
अपनी दुआओं का असर देख ली मैंने , उस
बेवफा को बेवफा न कहूँ , तो और क्या कहूँ
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