Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तुमको शर्म आती नहीं, आशिक से शर्माते हुए

 

तुमको  शर्म  आती नहीं, आशिक से शर्माते हुए

दिल  में  रह  के, दिल  के  खिलाफ़ जाते हुए


जब  तक  बेगाना था, कोई गम नहीं था हमको

अब आता है रोना , तुमसे मिलके जुदा होते हुए


दिल  की हसरतें उमड़कर लब तक चली आती हैं

मगर  जुबां  डरती  है , तुमसे  कुछ  कहते हुए


जो उम्रे-रवां1बेबफ़ाई न की होती हमारे साथ देखते

मेरी  किस्मत  को  तबीयत  के साथ संवरते हुए


यह  कहना तुम्हारा कि,तारा जानिसार2 है, झूठ है

तुमने  देखा  है, किसी को मुफ़्त का जान देते हुए



  1. ढ़लती उम्र  2. जान देने वाली


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