Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तुमको तुम्हारा ख़ुदा याद नहीं

 

तुमको   तुम्हारा  ख़ुदा  याद  नहीं

हमको   हमारा   सदा   याद  नहीं


लुटाकर   तेरे  गम  में, अपना  घर

बेघर-बार हुआ,अब मोहल्ला याद नहीं


मिटने चलीं जिंदगी की कद्रें, फ़िर भी

कैद-ए-हयात1  से  हुआ  आजाद नहीं


जो  तुम चाहो, तो  वक्त  संवर जाये

न चाहो तो कैसे  होगा वह बर्बाद नहीं


तुम्हीं  कहो,  कौन  ऐसा  गुलिस्तां है

जहाँ घात लगाकर बैठा है सैय्यादनहीं



  1. जिंदगी का पिंजड़ा 2.शिकारी

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