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Dr. Srimati Tara Singh
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उधार की जिंदगी

 

उधार की जिंदगी

बदनसीब तो तू पहले ही था; बचपन में माँ को खोया, आज अपना भविष्य खो आया । अब आगे क्या करेगा, कुछ बोलेगा भी, या यूँ ही गूँगा बनकर खड़ा रहेगा ! तेरे को पढ़ाने के लिए ,मैंने क्या कुछ नहीं किया, कभी न अच्छा खाया,न पहना, कृपण बना, बेईमानी की, दूसरों की खुशामद की, अपनी आत्मा की हत्या की ; आज तूने मेरी सारी तपस्या पर पानी फ़ेर दिया ।

       अजय का पिता,रामगुलाम बिना रूके बोलता रहा और अजय सिर झुकाये चुपचाप अपनी जगह खड़ा सुनता रहा । रामगुलाम ने फ़िर कहा----’ मैं जानता हूँ, तेरे पास इन प्रश्नों का उत्तर नहीं है । तू क्या जवाब देगा, तुझे मेरी चिंता भले ही न हो, लेकिन मुझे तो तेरी चिंता है ,कारण, मैं तेरा बाप जो हूँ । कौन माँ-बाप ऐसा है, इस दुनिया में ,जिसकी कामना यह नहीं होती,कि उसकी संतान सुखी रहे, उसे कोई कष्ट न हो । जिस तरह पैसे के लिए मुझे मरना पड़ता है, मेरी संतान को न मरना पड़े । जो धक्के मुझे खाने पड़े, कर्म-अकर्म करने पड़े, वे कठिनाइयाँ मेरी संतान को न झेलनी पड़े । लेकिन तुझे क्या, तू क्यों चिंता करे मेरी ? तभी बगल के पड़ोसी जो रिश्ते में अजय के ताऊ लगते थे, किसी काम से वहाँ पहुँच गये । उन्होंने देखा, रामगुलाम बहुत गुस्से में है । वे एक क्षण तक चकित नेत्रों से रामगुलाम को ताकते रहे, मानो अपने कानों पर विश्वास न आ रहा हो । फ़िर धीरे से बोले ----’रामगुलाम ! थोड़ी देर के लिए अजय को दोषी मान लूँ, तो ईश्वर ने क्यों नहीं निर्दोष संसार बनाया । जो तुम कहो, ईश्वर की इच्छा यह नहीं थी, तो मैं पूछता हूँ, जब सब कुछ ईश्वर के अधीन है तो वह मन को ऐसा क्यों बना देता है, जो दोष करे । यह वैसी ही बात हुई 

न, जैसे किसी रोगी से कहे, तू बीमार क्यों पड़ा, जल्दी ठीक हो जा । तेरी सेवा करते-करते मैं थक गया । अगर रोगी में इतना सामर्थ्य होता, तो वह बीमार ही क्यों पड़ता ?’

           तुम जिस अनीति और अधर्म की बात कर अपने बेटे को कोस रहे हो, तुमको पता है, वह अपने पीठ पर भविष्य का कितना बोझ उठाये घूमता है । उसके बोझ को अपने पितृस्नेह से हल्का करने के बजाय , तुम अपनी निष्ठुरता दिखाकर और भारी कर दे रहे हो । केवल शासन करने से कुछ नहीं हो्गा, बल्कि उसके अंदर ऐसी शक्ति भरने की कोशिश करना होगी, जिससे कि जरूरत पड़ने पर वह तुमसे भी चार गुणा भारी बोझ उठा सके । इस तरह एक ही साँस में अपने हृदय का सारा मालिन्य उड़ेल देने से ,न तेरा, न उसका; किसी का भला होने वाला नहीं है । फ़िर ताऊ स्नेह में डूबे हुए बोले---- ’अच्छा , रामगुलाम क्या यह मैं जान सकता हूँ, कि इसे किस गल्ती की सजा दी जा रही है ”

रामगुलाम की आँखें भर आईं और कहा---- ’ ताऊ ! आप ही हिसाब कर देखो, इसे पास किये तीन साल हुए या नहीं ? ’ 

ताऊ ने उत्तर में कहा--- हाँ वो तो हुआ ।

रामगुलाम दीन नजरों से ताऊ की ओर देखते हुए बोला—’इसका मतलब , तीन साल से न नौकरी , न चाकरी ; यह साहबजादा ! खटिया ही तो तोड़ रहा है और बाप के होटल की रोटी । फ़िर ट्रेन में , 2 घंटे की यात्रा में सोने की क्या जरूरत थी ? न सोता, न इसके सर्टिफ़िकेट चोरी होते !’

         रामगुलाम की बातें ताऊ को न्याय-संगत लगी । इसलिए उन्होंने, हाँ में हाँ मिलाते हुए , अजय की ओर देखकर कहा--- ’ बेटा , जगे में तो चोर –उचक्के जिंदगी भर की पूंजी उड़ा ले जाते हैं; तुम 


तो सो रहे थे । तुम्हारे पिता ठीक कह रहे हैं ---सफ़र के दौरान सोना ठीक नहीं ; लेकिन जो होने का ,वह तो हो गया, आगे क्या रास्ता है, वह बताओ । मैं तुम्हारे साथ, उन रास्तों पर चलने के लिए तैयार हूँ ।’

तभी अजय के फ़ोन की घंटी बजी । रामगुलाम  ने फ़ोन उठाया, पूछा--- ’ आप कौन बोल रहे हैं ?’ 

उधर से आवाज आई---’ मैं अजहर , अजय से बात कर सकता हूँ ?”

रामगुलाम मन ही मन सोचने लगा – ’मुस्लिम लड़का, क्यों  खोज रहा है इसे , वो भॊ बंगाल से , इसे तो मुहल्ले के लोग तक नहीं जानते ।’

दूर खड़ा अजय, अपने पिता की बातों को सुन रहा था । वह दौड़कर आया, उसे लगा कि कोई अनजान हमें खोज रहा है ; निश्चय कुछ भलाई की बात होगी । उसने पिता के हाथ से फ़ोन लेकर बोला---मैं अजय बोल रहा हूँ । उधर से आवाज आई---’ मेरा नाम अजहर है, मैं वेस्ट बंगाल के मालदह का रहनेवाला हूँ , परसों ट्रेन में मुझे एक लावारिस फ़ाइल मिली । इसमें कुछ सर्टिफ़िकेट हैं ,क्या ये आपके हैं ?’

अजय उछल पड़ा, मानो तीनों लोक की खुशियाँ हासिल हो गई हो । उसने कहा---’ हाँ भैया, सर्टिफ़िकेट मेरे हैं, आप अपना नाम-पता बता दें, तो मैं जाकर ले आऊँ ।’

अजहर ने अपना नाम-पता लिखवाते हुए कहा---’आप आ जाइये, मैं आपका इंतजार कर रहा हूँ ।’ ठीक दूसरे दिन अजहर को ढ़ूँढ़ता हुआ अजय ,उसके घर पहुँचा ; अपना परिचय दिया । अजहर और उसके 



पिता, सलीम ने बड़े आदर–भाव से उसे बिठाया, खिलाया और दूसरे दिन विदाकर, फ़िर आने को कहा ।’

           आज अजय रेलवे में कार्यरत है । उसके टेबुल पर एक तरफ़ उसके माँ-बाप और भगवान की मूर्ति है, तो दूसरी ओर अजहर की । अजय का मानना है---’अजहर मुझे सर्टिफ़िकेट नहीं दिया होता, तो मैं आज जाने कहाँ भटक रहा होता । मेरी खुशहाल जिंदगी, इन्हीं चारो की बदौलत है । अजय हर साल ईद पर अजहर के घर उपहार लेकर जाता है, और अजहर भी दीपावली पर अजय के घर आता है । अजय के पिता का भी कहना है , अजहर मेरे बेटे का दिली दोस्त है, वह जो अजय की जिंदगी में नहीं आता, तब मेरा बेटा, आज आप जिसे ऑफ़िस में बैठा देख रहे हैं, वह किसी खेत में ढ़ेला फ़ोड़ रहा होता ।

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