Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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उजड़ी पड़ी दिल की बस्ती को

 

उजड़ी पड़ी दिल की बस्ती को ,तुम बसा दो

या इस चरागे-सहर को अपने हाथों बुझा दो


गैर  की जिक्रे वफ़ा से जलता है दिल, खाक

न  हो  जाये, इसे  न  और अधिक हवा दो


कातिल तुम्हारा थक चुका है,कुछ नरमी बरतो

गर  खता  किया है इसने  तो, इसे सजा दो


दिल  लगाना  है, या लगना है गले, दाँव पर

लगाना  है, जो  भी  तुमको, उसे  लगा  दो


बुरे  वक्त में, मौत ही आता है काम, तुम्हारा

पता अब पुराना हुआ,उसे  मे्रा पता बता  दो

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