Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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यह सागर क्यों सूख चला

 

यह       सागर       क्यों           सूख      चला

हम       सबसे         मुँह        मोड़        चला

 

क्या  जमीने  मोहब्बत  स्वीकार  नहीं

जो   दस्ते- चमन   को   छोड़  चला

 

वो  रंगे- नशात  की  बहारें  हैं  कहाँ

जिसके लिए धरा को तिश्नगी छोड़ चला

 

खोलता नहीं भेद दिल का, क्या बात है

हर लम्हे पर अक्से–वफ़ा को छोड़ चला

 

अब  लेगी साँस  कैसे जमीं शायर की

मेरे  अशआर  को  कुचल, तोड़  चला

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