Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बसंत के स्वागत में

 

बसंत के स्वागत में


किसके आने की खबर से बिछने लगी

रातल पर कोमल लतिकाओं की डाली

धरा आँगन  में लगे सुरभि चूर्ण उडने 

मनोभाव के  विहग लगे कलरव करने

सुहागिनियों  के र्मिल अलकों में लगे

सुंदर अनुराग  के कुमकुम चूर्ण उडने

नदी सरोवर में किरणें लगींकेसर घोलने 

तरु डालियों से लगे सुगंधित सौरभ उडने 

प्रेमी  हृदय  वाटिका में गा मधुमास छाने

रक्त लोचन श्वेत पारावत लगे खुशी से उडने

दिन में सूर्य़ से संजीवनीनिशि में सुधाकर 

से लगीं सुधा  की  बूँदें टपटप कर टपकने


लगता ,धरा  नभ में मर्मोज्ज्वल उल्लास भरकर 

ज्योति – तमस को विश्व  आभा  में मिलाकर 

धरा - रज को कुसुमित करने ,   छुईमुई -सी

जलद में शशि छाया-सी,शोभा का हाथ पकडकर 

सुषमा सुंदरी उतररही हो धरा पर

भू-मानव के जीवन हिल्लोल को ,आकाश छुआने


फूलों के भ्रमर स्वरका कुंजन सुनकर 

गिरि  काननलगे अपलक निहारने

रंग – विरंगी  पंखुरियाँ खिल उठीं  अचानक 

उदधि उच्छ्वसित पृथ्वी पुलकित लगी होने

प्राणों के स्वप्नालिंगनमें वसुधा को बांधने

हृदय विनत मुकुल सा,लगे आसमां से बातें करने






दिव्य  रजत से  मंडित देख धरा आनन को

लगे सभी आपस  में एक दूजे से  बातें करने

क्या भू -प्रदीप  की शिखा  आकाश कीओर  है

ऊर्ध्वचित्त जो निश्चल निष्कंप किरणें शुभ्र आभा-सी

नभ में उदित होकर,शून्य नभ में लगी शोभा भरने


कल तक कांप रही थी धरती,शिशिर के आघातों से

लगता आज बसंत के स्वागत में हट गया धरा से

जिससे ज्योतिर्मय  यह दिव्य हंसिनी अपना

स्वर्ण पंख धरा पट पर फैला सके पूर्ण रूप से

आम्र मंजरित  कानन में कोकिला  पुकार सके

पिउ  कहाँपिउ कहाँ उसके शुभ्र बल से



जिससे धरा स्पंदित रहे सुगंधित फूलों से

धरा मानव  पल्लवित रहे कोमल पत्तों से

शोभाधरणी के चरणों में अपना प्राण-सुमन 

अर्पित कर सके अपनी पायल के झनझन से

जिससे उर कलियों में पुंजित होकर उल्लास 

साँसों से आन्दोलित होकर बह सके


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