फ़िर से आयेगी वह सुबह देखना
धरती आसमां में होगी सुलह देखना
अभी बादल है, आसमां को ढँका हुआ
कल चाँद से, उसकी जिरह देखना
कौन कहता, जगत के बाहर रहती नहीं
ज़ुदाई, दिन को रात का विरह देखना
टूटकर तारे आ गिरते हैं जमीं पर
होते हैं तारों में भी ,कलह देखना
गुंचे में बंद सपनों का फ़ूल देखना
छ्लकेगा एक दिन सागर भी, कदह देखना
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