Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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गमकी अँधेरी रात में तुम कहाँ हो

 


गमकी  अँधेरी  रात  में  तुम कहाँ  हो

जहाँभी  हो , आवाज  दो , तुम कहाँ हो


मिटती  नहीं  दागी उलफ़त  गुजर जाने  के

बाद भी , सोचकर  तुम  क्यों  परेशां  हो


मुहब्बत  में  हसरतों  की  कमी  नहीं होती

मगर लबे-नाजुक पर इसका कुछ तो निशां हो


कैसे  कर  पूछूँ  उससे, दुनिया  का हाल, जो

खुशी  में अपना हाल अपने ही करता बयां हो


आखरी दम तक  न रहता कोई जबां

बहारे-उम्र1  रहता नहीं वहाँ, जहाँ न खिजा हो



  1. जीवन वषंत

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