गमकी अँधेरी रात में तुम कहाँ हो
जहाँभी हो , आवाज दो , तुम कहाँ हो
मिटती नहीं दागी उलफ़त गुजर जाने के
बाद भी , सोचकर तुम क्यों परेशां हो
मुहब्बत में हसरतों की कमी नहीं होती
मगर लबे-नाजुक पर इसका कुछ तो निशां हो
कैसे कर पूछूँ उससे, दुनिया का हाल, जो
खुशी में अपना हाल अपने ही करता बयां हो
आखरी दम तक न रहता कोई जबां
बहारे-उम्र1 रहता नहीं वहाँ, जहाँ न खिजा हो
- जीवन वषंत
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY