गर न होती तेरी दया मुझ पर
तुझे देख, मेरा आँचल होता क्यों तर
तुम पूछते हो, मेरे घर का नाम पता
क्यों फ़कीरों के भी होते कोई घर
न होती दबी राख में अगर चिनगारी
तो धुएँ उठने की फ़ैलती क्यों खबर
पाँचो उँगलियाँ मिलकर बनती एक हथेली
इसमें न कोई बेहतर, न कमतर
जिंदगी का बोझ नातवाँ से उठता नहीं
वरना इश्क से भारी होता नहीं पत्थर
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