Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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गणतंत्र दिवस

 

26 जनवरी , भारत के इतिहास का वह स्वर्णिम दिन है, जिसे कोई भी भारतवसी कभी भूल नहीं सकता । इसी दिन भारत की जनता को अपने प्रतिनिधि सभा द्वारा निर्मित पहला संविधान मिला और भारत को सर्वप्रभुत्व सम्पन्न , जनगणतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया ।
लेकिन भारत के संविधान लागू होने के पहले भी 26 जनवरी का महत्व बहुत था । 31 दिसम्बर 1929 को रात के अंधेरे में, मध्य रात्रि को राष्ट्र को स्वतंत्र बनाने के लिये रावी नदी ( लाहौर में ) के तट पर सैकड़ों देशभक्त ,कांग्रेस के अधिवेशन में तिरंगे झंडे के नीचे इकट्ठा हुए, जिसकी अध्यक्षता स्व० पंडित जवाहर लाल नेहरू ने किया । वहीं इसकी रूपरेखा तैयार की गई, उसमें यह तय हुआ कि अगर अंग्रेज 26 जनवरी 1930 तक भारत को डोमीनियन स्टेट्स का दर्जा नहीं प्रदान किया, तो भारत अपने आपको, इसी दिन से पूर्ण स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर देगा और आज के बाद भारत, ब्रिटिश कानून मानने के लिये बाध्य नहीं होगा । पूरे देशवासियों ने स्वतंत्रता की शपथ ली, नगर-नगर में सभाएँ की गईं । गली- गाँव में जुलूस निकाले गये और 33 करोड़ कंठों ने , यह प्रतिग्या ली ,’जब तक हम पूर्ण स्वाधीन नहीं हो जायेंगे,हम निरन्तर अपना बलिदान देते रहेंगे । उसी दिन से भारतवासी गोली, लाठी, पिस्तौल और तोपों के मार को झेलते हुए, 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाते आ रहे थे । इसलिए यह दिन प्रत्येक भारतवासी के लिये गौरव और आत्म-सम्मान का दिन है ।
लगातार 17 वर्षों तक संघर्ष करने के बाद, आखिरकाल 26 जनवरी 1950 को यह अध्याय समाप्त हुआ । इसी दिन जनता के प्रतिनिधि , राष्ट्रपति का शासन प्रारम्भ हुआ ; देश को अपना नया संविधान मिला और भारत को सर्वप्रभुत्व सम्पन्न जनगणतंत्रात्मक गणराज्य घोषित किया गया । इसलिए इस दिन को स्वतंत्रता दिवस की जगह गणतंत्र दिवस कहा जाने लगा और स्वतंत्रता दिवस , 15 अगस्त को मनाया जाने लगा ।
15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों ने भारत की सत्ता की बागडोर पं० जवाहर लाल नेहरू के हाथों सौंप दिया, लेकिन भारत पर अपना आधिपत्य बनाये रखा । भारत, भारत नहीं,एक ब्रिटिश कालोनी की तरह था , जहाँ की मुद्रा पर जार्ज की तस्वीरें थीं ।
आजादी मिलने के बाद तब की सांसद ने देश के संविधान को फ़िर से परिभाषित करने की जरूरत महसूस की । इस संविधान के गठन का भार 211 विद्वानों को दिया गया , जिसके अध्यक्ष डा० भीमराव अम्बेडकर थे । 2 महीने और ग्यारह दिन में यह संविधान तैयार हुआ, जो सरकार से मंजूरी पाकर 26 जनवरी 1950 से अपना काम करना शुरू किया । डा० राजेन्द्र प्रसाद , भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने ।
राजधानी में इसे मनाने की एक विशेष परम्परा है । इस दिन राष्ट्रपति, बग्घी में अपने भवन से विजय चौक पहुँचती हैं । देश की शक्ति का प्रदर्शन किया जाता है । सेना के तीनों अंग पूरी साज-सज्जा के साथ इस उत्सव में शामिल होते हैं । भारत की प्रगति की झाँकियाँ निकाली जाती हैं । नाच-गाने, बैंड- बाजे , हाथी , ऊँट, तोप, समुद्री जहाज , कृषि और उद्योग की झाँकियाँ, स्कूली बच्चों के नाच-गाने , सभी देखते बनता है ।
इस उत्सव में ,प्रत्येक वर्ष दूसरे मित्र देशों के शासनाध्यक्षों को आमंत्रित किया जाता है । वे अपनी उपस्थिति द्वारा इस राष्ट्रीय महोत्सव की शोभा बढ़ाते हैं । इस दिन राजधानी में बड़ी भीड़़ होती है । इंडिया गेट पर लगता है, मानो इन्सानों का समुद्र लहरा रहा हो । राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, सेंन्ट्रल सेक्रे्टेरियेट, तथा मुख्य सरकारी इमारतें, रंग-बिरंगी रोशनी से जगमगा उठती हैं । सब मिलाकर 26 जनवरी , सभी भारतीयों के गौरव और उत्साह से परिपूर्ण रहता है । इस प्रकार यह दिन हमारी राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक है और उन महान आत्माओं को याद करने का भी दिन है, जिन्होंने देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिये खुद की बलि चढ़ा दी और जाते-जाते कह गये --- हम लाये हैं तूफ़ाँ से इसे निकाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के
जयहिंद !

 

 

 

डा० श्रीमती तारा सिंह

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