कहते हैं, दुनिया में सात अजूबे हैं,जिनमें ताजमहल एक है । पर सच मानिये,आज की नव पीढ़ी जो पश्चिमी सभ्यता में कुछ इस प्रकार रंग जा रही है कि उनके लिए कंकरीट से बने इस जड़ में क्या रखा है । उस पर इतना पुराना कि करीब जाओ तो गिरने का खतरा; दूर रहो तो आँखों में किरकिरी पैदा करता । इससे भी ऊँची इमारतें दुनिया में हैं; फ़िर इन्हें अजूबे में क्यों गिनूँ ? इसके लिए टिकट कटाकर देखने की कोशिश बेवकूफ़ी है । जिसने भी बनाया ; अपने लिए, अपने हिसाब से बनाया, अपने दिल की भड़ास को मिटाया । अब उनके चले जाने के बाद मैं क्यों वहाँ बैठकर कीर्तन करूँ ; उसकी इच्छाओं के स्वर्णजड़ित महल की रक्षा करूँ । क्या अपने घर की रक्षा करना आज के जमाने में कम बड़ी बात है ,जो किसी के मनसूबे महल का पहरेदार बनूँ । आदि-आदि ; न जाने कितनी ही बातें सुनने को मिलती हैं । लगता है,आज दुनिया में प्रेम-त्याग और सम्मान का कोई मायने नहीं रह गया । अगर कुछ रह गया है, तो वे हैं नंगी फ़िल्में,जिसे हम –आप बच्चों के साथ मिल-बैठकर देख नहीं सकते । लेकिन इन्हें देखिये ! एक बार नहीं,दो बार नहीं; सौ बार देखकर भी नहीं अघाते । खाते-पीते ,उठते-बैठते; यहाँ तक कि सपने भी ये इन्हीं बे-ओहियात फ़िल्मों में अटके रहते हैं । कहते हैं,क्या फ़िल्म है--- मल्लिका शेरावत को देखा, कितने कम कपड़ों में नाच रही थी और पहले की हीरोइनें ,दश गज की साड़ी में लिपटी, सती-सावित्री लगती है । वह हिरोइन कम, देवी अधिक लगती है । फ़िल्मों की कहानियाँ की बात, बाप रे मत पूछो ! वहीं पूजा-पाठ, बड़े-बूढ़ों का रोना-धोना, बहू का सिसकना,ऊबन सी लगती है देखकर ,लेकिन आजकल की फ़िल्मों को देखो ।,विपासा आदि , कार चलाती हुई , बिकनी पहने आती है; जितना उनलोगों का अंग खुला रहता है ,
दिल भी उतना ही खुला रहता है । लोग आते-जाते रहते हैं । ले मल्लिका किन वहाँ तक पहुँचने के लिए अधिक पैसे वाला होना जरूरी होता है । हमारी नजर में तो सात अजूबों को हटाकर, अब इन हिरोइनों को रखना चाहिये जिससे हमारा मनोरंजन होता है । कम से कम तीन घंटे के लिए तो हम जरूर,अपने आपको भाग्यशाली लोगों में एक समझते हैं । मगर ताजमहल, जाने पर खुद को भिखारी महसूस होता है । लगता है , शाहजहाँ के बाद और किसी ने अपनी पत्नी से प्यार किया ही नहीं; करता तो उसके भी ताजमहल होते न और अगर नहीं हैं, तो उसका कारण हमारी गरीबी है । जहाँ पहुँचकर जिसे देखकर दिल में कुंठा जगे, खुद के भाग्य पर रोना आये ; उसे हम अजूबा कैसे कह सकते हैं । इसे तो हम मखौल उड़ाने वाला स्तूप कह सकते हैं । हीरे-मोतियों से जड़े ,सीना ताने हर गुजरने वालों से कहता है,प्यार किया तो हमने किया । हम जिंदा थे, तब भी तुम्हारे नजर में अजूबा थे, मर गये तो अब भी अजूबे बनकर खड़े हैं । तब भी तुम छू नहीं सकते थे ;अब भी नहीं छू पाते । अरे, गरीबों के लहू से पोती हुई ताज की दीवार इतनी मजबूती से ५०० साल तक भी नई क्यों है ? जानते हैं,वो इसलिए कि इसके भीतर गरीबों की आहें जब तड़पती हैं, तब उसके घर्षण से जो शक्ति उत्पन्न होती है, उसी के विद्यूताकर्षण की शक्ति को पाकर यह इतना मजबूत है अन्यथा यह दीवार कब की टूट कर बिखर गई होती;दीवारों का रंग इतनी चटकीली नहीं,मैली हो गई होती ।
डा० श्रीमती तारा सिंह
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