Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इस कदर भी मुँह मोड़कर, कोई जाता नहीं

 

इस  कदर भी  मुँह मोड़कर, कोई जाता नहीं

दुश्मन  भी दुश्मन  पर,ऐसा कहर ढाता नहीं


माना कि  इन्सान नहीं, पत्थर  हूँ मैं, मगर

पत्थर  कोकोई  पत्थर    मारता  नहीं


ऐसे  ही मिलीं, दुनियाँ से जिल्लतें कम नहीं

अब तो मौत को देखकर भी मैं घबड़ाता नहीं


जिससे  दवा की आश लिए,मौत से लड़ रहा 

था मैं, वह  दुआ लेकर  भी इधर आता नहीं


क्या  बताऊँ, हमनशीं, कहना  तो था तुमसे

बहुत कुछ, मगर सुखन होंठों तक आता नहीं

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