Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जहाँ चाह , वहीं राह

 

जहाँ चाह , वहीं राह



कहते हैं, मजबूत इरादे हों तो आदमी क्या कुछ नहीं कर सकता । समुद्र लांघ सकता, पहाड़ तोड़ सकता । कोई भी काम, उसके लिए असंभव नहीं होता ।; सिर्फ़ मन में ठानने की जरूरत होती है ; राहें खुद-बखुद बनती चली जाती हैं । शायद इसीलिए विभा के हाथों का घाव, एक अधेली खर्च किये बगैर ठीक हो गया । अन्यथा तीन सौ रूपये तनख्वाह पर सेठ के घर,सेठानी का पाँव मालिश करने वाली एक नौकरानी , ५००/- रुपये में एक शीशी तेल कहाँ से खरीद पाती ? कैसे अपने हाथ का इतना महंगा इलाज करवा पाती । सेठानी के उतरन से तन ढँककर और उसके सात बच्चों के जूठन से जिंदगी तो जैसे-तैसे कट जा रही थी, मगर हाथ का घाव, जिंदगी के लिए नासूर बनकर रह गया था । विभा को समझ में नहीं आ रहा था, कि हर महीने ५००/- रुपये की दवा (तेल) ,वह कहाँ से लाए । कई बार मालकिन के सामने कुछ पैसे उधार के लिए गिरगिराई भी । लेकिन ,देना तो दूर; यह कहकर मालकिन ने भयभीत कर दिया कि, ’तुम्हारे हाथों का घाव बढ़ता ही जा रहा है । तुम गाँव के पीड़ बाबा के पास क्यों नहीं जाती । वही कुछ तुम्हारा इलाज कर सकेंगे ; वरना, तुम्हारे हाथों का जो हाल है ” विभा , मालकिन के बातों से खफ़ा तो नहीं हुई, लेकिन भविष्य में आने वाले दुखको भाग्य के आईने में तैरता देख, दुखी अवश्य हुई ।
ऐसे जितने मुँह, उतनी बातें; जितने लोग,उतने इलाज । जिसने जो बताया, विभा ने वह सब किया । किसी ने कहा,’ नीम का पत्ता पीस कर लगाओ ; किसी ने कहा,;वट का छाल उबालकर पीओ ।’ विभा सभी तरह का उपचार कर हार गई , घाव ज्यों का त्यों बना रहा । तभी एक दिन ,विभा को उसके मामा मिले । उन्होंने विभा के हाथ के घाव देखते ही, कहा,’ यह घाव तुम्हारा, पूरी तरह ठीक हो सकता है, अगर तुम संजीवन बूटी का तेल सुबह-शाम अपने हाथों पर कम से कम ,आधे घंटे तक मला करो । मामा की तरफ़ मजबूर नजर से आँखें नम किये विभा बोली,’ इतने पैसे कहाँ से लाऊँगी । फ़िर एक बार तो नहीं, आप जैसा बता रहे हैं, लगभग एक साल तक लगाना होगा ।’ मामा ,विभा की आँखों में तैरते आँसू के तकलीफ़ को भलीभांति समझ गये । लेकिन मामा करते भी क्या ; जो खुद दूसरे के खेत में हल चलाकर मात्र अस्सी रुपये पाते थे । वह भी, कभी काम मिलता, कभी नहीं । बोले, ’ठीक है, तो कोशिश कर देखना ; ऊपर वाला बड़ा दयावान है ,उस पर भरोसा रखना’,कहते हुए चले गये । तभी से विभा चलते-फ़िरते, उठते-बैठते पैसे की चिंता में रहने लगी । एक दिन विभा सोये-सोये अपने झोपड़े के टूटे ठाठ से आकाश को निहार रही थी । तभी दिमाग में एक बात आयी । अरे हाँ, मालकिन के पाँव के मालिश के लिए अगर यही तेल लाया जाय, तो कितना अच्छा हो । उनके पाँव का मालिश और मेरे हाथ का इलाज, दोनों एक साथ हो जाय । जहाँ मैं आधा घंटा मालिश करती हूँ, अब से एक घंटा मालिश करूँगी । इससे मेरे हाथों को एक घंटे तक तेल मिलता रहेगा ; लेकिन कहीं इससे मालकिन के पाँव को क्षति तो नहीं पहुँचेगी । एक बार मामा से पूछ लेना जरूरी है । विभा, मामा के घर, मामा से पूछने गई ; बोली,’ मामा जी तेल का इन्तजाम तो हो गया, लेकिन अगर मैं उसे अपने पाँव में लगा ली,तो कुछ बुरा तो नहीं होगा ।’ हँसते हुए मामा ने कहा.’ नहीं ; उसे कोई भी लगा सकता है, सिर्फ़ दामी है, लोग खरीद नहीं सकते । इसलिए यह तेल दवा बनकर रह गई । फ़िर क्या था, विभा मामा को प्रणाम कर सीधा मालकिन के घर पहुँची ।

इधर मालकिन सोच-सोचकर चिंतित थी कि विभा को एडभांस में पैसे नहीं देने पर, हो सकता है कि गुस्से में वह यहाँ आना बंद कर दे, फ़िर क्या होगा । पाँव मालिश के लिए कोई मिलती भी तो नहीं । तभी घर का बेल बजा । मीका ( मालकिन का छोटा बेटा ) दरवाजा खोला ,देखा दरवाजे पर खड़ी विभा मुस्कुराती हुई मीका से पूछती है,’ भाभी जी ( मालकिन ) कहाँ हैं ? मीका ने कहा, माँ भीतर कमरे में हैं, आज उनके पाँव में काफ़ी दर्द है । उठ नहीं पा रही है । ’ विभा, मीका की तरफ़ देखते हुए, अब सब ठीक हो जायगा और भाभी- भाभी पुकारती हुई ,कमरे में पहुँच गई । सेठानी, विभा को इतना खुश कभी नहीं देखी थी । वह हड़बड़ा कर उठने की कोशिश करती हुई, ’क्या है विभा, आज तुम बहुत खुश हो ?’ विभा ,’हाँ, आज मैं काफ़ी खुश हूँ । जानती हो भाभी,क्यों ?’ सेठानी ,’ मैं कैसे जानूँ, तुम ही बताओ ।’ भाभी, तुम्हारे पैर का दर्द ,अब सदा के लिए छूट जायगा ।’ सेठानी,’ वो कैसे , जल्दी बोलो ।’ भाभी,’मेरे एक मामा हैं । उनसे जब मैंने तुम्हारे पाँव के दर्द की बात बताई तो उन्होंने एक दवा का नाम बताया । कहा, इसे रोज सुबह-शाम, एक घंटे तक अगर मालिश करे, तो उनके पाँव का दर्द एक साल में पूरी तरह खतम हो जायगा । सुन मालकिन, इस तरह खुशी से झूम पड़ी, मानो, उम्र साठ की नहीं, सोलह साल की हो । फ़िर जोर से आवाज लगाती हुई,’अरे ! मीका ! विभा को ५००/- रूपये दे देना, बेटा । जरा जल्दी करना ।’ मीका आलमारी से पाँच सौ का नोट निकाल कर विभा को थमाते हुए,”ये लो’ । विभा दरवाजे की ओर भागती हुई , ’भाभी; दवा लेकर अभी आती हूँ ”कुछ देर बाद विभा हाथ में तेल भरे एक शीशी को लेकर , भाभी के पास जाकर खड़ी होती हुई बोली,’ भाभी ! ये रहा वह तेल ।’ सेठानी,”तो फ़िर देर किस बात की; आज से ,अभी से लगाना शुरू कर दे । अगर मेरे पैर का दर्द ठीक हो गया तो, ईश्वर को साक्षी रखकर वादा करती हूँ , मैं तुम्हारी तनख्वाह तीन सौ से बढ़ाकर पाँच सौ कर दूँगी । ऊपर से तीन महीने की लम्बी छुट्टी पूरे पगार के साथ दूँगी, जिससे कि तुम भी अपने हाथ का इलाज किसी अच्छे डाक्टर से करवा सको । ’ विभा,’ हँसती हुई, नहीं भाभी, इसकी जरूरत नहीं होगी और मालकिन के पाँव का मालिश आधे घंटे के बजाय, एक घंटे तक करने लगी । तेल का असर हुआ । विभा के हाथों का घाव मुरझाने लगा और सेठानी के पाँव का दर्द भी कमने लगा । अपने पैर के दर्द को कमता हुआ महसूस कर, सेठानी का प्रेम विभा के प्रति बढ़ गया । साल का अंत आते-आते, विभा के हाथ का घाव पूरी तरह ठीक हो गया । भाभी को भी बहुत लाभ हुआ, क्योंकि आधे घंटे से बढ़कर अब पूरे एक घंटे का मालिश जो होने लगा । सेठानी विभा से बहुत खुश रहने लगी और विभा भी हाथ का घाव ,पूरी तरह ठीक होने से चिंतामुक्त होकर जीने लगी । एक दिन विभा को मामा से बाज़ार में फ़िर मुलाकात हुई । देखते ही मामा जी पूछ बैठे,’ तुम्हारे घाव की हालत अब कैसी है ?’ विभा पूरे वृत्तांत को सुनाते हुए बोली,’ अब घाव ठीक हो गया ।’ सुनकर मामा हँसते हुए बोले,’ जहाँ चाह, वहीं राह ।’



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