जिसके जल्वे से जमीं –आसमां सर-शार1 है, हमने
उसी से तेरे लिए, चाँद-तारों की उमर माँगी है
तेरे पाँव में जमाने के काँटे न चुभे कभी
बहारों से हमने, तेरे लिए फ़ूलों की डगर माँगी है
फ़लक2 से भी ऊपर तेरे रुतबे के शरारे3 उड़े
उस अनदेखे ख़ुदा से हमने, गुम्बदे बेदर माँगी है
जो तू पास नहीं होता, तमाम शहर हमें वीरां लगता
हमने अपनी अफ़सुर्दा-निगाहों4की उससे कदर माँगी है
खुश हो ऐ वक्त कि आज मेरे लाल का जनम दिन है
तुमसे और कुछ नहीं,बस सौ साल की उमर माँगी है
1.लबालब 2. आकाश 3. चिनगारियाँ 4.उदास नेत्र
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