ज्योतिषी
ज्योतिषी, अपने नयन के तीक्ष्ण यंत्र से
अम्बर के नक्षत्र पुंज को भेदना छोड़ो
तारों में है संकेत , चाँदनी में छाया
यह कहावत है बड़ी पुरानी , इसे
अपने कोमल शब्दों की पोशाक पहनाकर
बार – बार दुनिया को सुनाना छोड़ो
तुम्हारा तो दावा है, तुम त्रिलोक विजयी हो
मृत्ति और आकाश तुम्हारी मुट्ठी में है
तत्वों के अस्तित्व , अनास्तित्व में
कहाँ छिपा है, स्वप्न देह धरकर विचरती
कहाँ , तुम्हारे जेब में वह मिट्टी है
तो बतलाओ , डाली के गुंठन में
आज छिपी हुई है जो कलियाँ
उनके प्रणय ज्वलित उर में
कितनी बार उठेंगी झंकृतियाँ
तब जाकर वे फ़ूल बनकर खिलेंगी
यह भविष्य वाणी तुम्हारे लिये तो सस्ती है
व्योम में बह रहे , रसों के ताल को छोड़कर
धरा पर बूँद – बूँद को तरसने वाले
पल , दिवस , निमिष जब सब तुम्हारे
वश में है, तुम दूसरों की मुसीबत
से बिंधी जिंदगी को रोशनी दे सकते हो
तब तुम्हारा खुद का जीवन अंधकारमय क्यों है
क्यों खुशी की कोई किरण नहीं ,बता सकते हो
जब कि तुम्हारे लिए अम्बर में उड़ रही
आनंद शिखा को पकड़ना कुछ नहीं
तुम्हारे पास , स्वर्ग की कुंजी है
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