Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कभी घर से बाहर निकल कर तो देखो

 

कभी घर से बाहर निकल कर तो देखो

पत्थर को  फ़ूल में बदलकर तो देखो


है वादे-बहारी,रंगे चमन बहुत ही अच्छा

कुछ  दूर  तक तुम टहलकर तो देखो


वृथा   जायेगीदो बूँद आँसू तुम्हारा

शहीदों के नाम,आँखें सजलकर तो देखो


लोग बदलेंगेदुनिया बदलेगीबदल रहे

चाँद-तारेअपनी बात पहलकर तो देखो


फ़ुर्सत के  दिन बहुत काम आयेंगे,कभी

मेरे शेर को गज़ल में बदलकर तो देखो

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