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कन्या भ्रूण हत्या

 

कन्या  भ्रूण  हत्या
---- डा० श्रीमती तारा सिंह , नवी मुम्बई


आदिकाल से ही नारी को देवी का दर्जा देकर पूजने वाला हमारा समाज, हकीकत में नारी को सदा से सताता आया । उसे मोम की गुड़िया की उपाधि प्रदान कर, घर के कोने में गाड़ रखा । सजावट की बेहतरीन वस्तु समझकर अपने घर के आलमारी में सजा दिया । इसमें हमारा प्राचीन समाज बढ़-चढ़कर भाग लिया । कभी रखैल, कभी पत्नी का दर्जा देकर उसका यौन शोषण करता रहा । कभी चरित्रहीन बताकर घर से ही निकाल दिया । उदाहरण के लिए, पाँच पतियों की रानी कही जाने वाली,द्रौपदी को ही लीजिए – पाँच-पाँच पतियों में अपना जीवन बाँटना पड़ा ; बावजूद उसका चीरहरण हुआ और हमारा समाज तमाशगीर बन बैठा, इस तमाशे को देखता रहा । एक अबला का दर्द और चीत्कार उन्हें अपने स्थान से हिला न सका । स्वयं भगवान कहे जाने वाले रामचन्द्र जी ने सीताजी की अग्नि परीक्षा लेने के बावजूद भी ,एक अदना व्यक्ति की बात में आकर उस देवी को अपने छोटे भाई के द्वारा जंगल में ( वह भी गर्भवती अवस्था में) छोड़ आये । छोड़ने के पहले उन्हें बच्चे को घर में जन्म देने की मोहलत तक नहीं दी गई । दूसरी तरफ़ लोग सीताजी को जगत-जननी, धरती माता; न जाने क्या-क्या नाम की उपाधि देते रहे ।
विडंबना ही कहिए, जिस मर्द को औरत ने जनम देकर अपने खून से सींचा, पाला-पोषा और बड़ा किया; वही बड़ा होकर पग-पग पर औरत होने के ताने देकर उसे कोसता है , जिंदा खर-फ़ूस की तरह जला डालता है । इतना ही नहीं, अब तो उसे दुनिया में आने से भी रोका जाने लगा है । वह इस दुनिया में पाँव न रख सके, उसे जनमने से पहले ही मार दिया जाता है । हमें आज के आधुनिक तकनीक पर खुश होना चाहिए या रोना चाहिए; यह हमारे समाज के लिए आशीर्वाद स्वरूप है या अभिषाप का रूप । मगर जिस गति से कन्या भ्रूण हत्या हो रही है, उसे देखते हुए संभव है, एक दिन मानव जाति का स्तित्व नहीं रहेगा ; क्योंकि इसे जनने वाली ही नहीं रहेगी , तो हमारी मानव जाति आयेगी कहाँ से । निश्चय ही यह भयभीत करने वाली बात है । ज्यों-ज्यों हमारा समाज आधुनिकता में प्रवेश करता जा रहा है, त्यों-त्यों स्त्री पर अत्याचार करने की विधि भी आधुनिक होती चली जा रही है । पहले जहाँ बेटी की हत्या जनमने के बाद की जाती थी, वहीं अब जनमने के पहले गर्भ में ही कर दी जाती है । यह सब आधुनिक तकनीक का कमाल है । गर्भ में पल रहे बच्चे की जाति परीक्षण करवाकर जान जाते हैं और अगर वह बेटी हो तो भ्रूण हत्या करने में डाक्टर और हमारा समाज जरा भी संकोच नहीं करते । इस कृत्य के पीछे सामाजिक , आर्थिक और धार्मिक, कई कारण होंगे; परन्तु यह भ्रूण हत्या एक व्यक्ति का कत्ल करने के समान है । आधुनिक विग्यान भले ही टेस्ट ट्यूब बेबी बनाने में मशगूल हो, पर इससे कुटुम्ब शब्द ही नाम -शेष रह जायगा ।
दुख की बात है, आज हमारा मर्द प्रधानगी समाज इतना आधुनिक होकर भी, कितना संकुचित है । बार-बार बेटी जनने वाली जननी को कुलक्षिनी, कलंकिनी व अभागिन कहकर पुकारते हैं । उसे लथाड़ते हैं, उसका वहिष्कार करते हैं । जब कि बेटा या बेटी , इस जाति का आधार गर्भ धारण के समय पुरुष के जनीन रंगसूत्रों पर होता है । समाज का हर स्तर , जन-जन इस बात को समझे, जाने; इसके लिए बेटी बचाओ योजना के तहत सेमिनार में बताये भी जाते हैं ; लेकिन यह अपर्याप्त है । इसे जब तक यह जन-जन की खबर नहीं बन जाती है , तब तक नारी इसी तरह सरे आम समाज द्वारा घिसती- पिटती रहेगी ।
हमारा समाज नारी को अबला बताकर भी, उसको संबल नहीं दे सका । बेटे और बेटियों के खान-पान से लेकर, शिक्षा व कार्य में उनसे भेदभाव होना, हमारे समाज की परम्परा बन गई है । दुखद है कि इस परम्परा के वाहक, अशिक्षित व निम्न व मध्यवर्ग ही नहीं, बल्कि उच्च व शिक्षित समाज भी उसी परम्परा की अर्थी को ढ़ो रहा है । पूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण, इससे कोई कोना अछूता नहीं है ।
हमारे समाज में पिता बनना एक बड़ा तजुर्बा हाशिल करने के बराबर माना जाता है । तभी तो लोग उलाहना स्वरूप कहते,’बाप बन गया है और अभी तक अबोध सी बातें करता है’; लेकिन पिता का मुख सूखी लता –सी तब तक मुरझाया रहता है, जब तक वह एक पुत्र का पिता नहीं कहलाता । लेकिन सारे पिता ऐसे हों, ऐसा नहीं है । एकाध आज भी ऐसे पिता हैं, जो पाँच-पाँच बेटियों का बाप बनकर भी खुश और स्वस्थ जीते हैं । कई माँएं भी होती हैं जो बेटी के रहते देवी-देवताओं के आगे बिलखती हैं, कहती हैं, हे ’मेरे आराध्य देवता ! मेरी बेटी की जगह , तुम अगर एक बेटा दिया होता ,तो आज मैं कितना खुश रहती । बेटी तो पराया धन होती है, वह आज मेरे साथ है, कल अपने घर चली जायगी । तब मैं अकेली कैसे जीऊँगी ? और तो और , मेरी अर्थी का अंतिम संस्कार, मेरा मुखबाती कौन करेगा ? माना कि बेटी भी मेरी संतान है, मगर इसके मुखबाती करने से मुझे स्वर्ग तो नहीं मिलेगा । इसलिए मुझे एक बेटा दे दो ।’
सरकारी आँकड़ा कहता है, भारतवर्ष में प्रति वर्ष , ७० लाख गर्भपात अवैध रूप से हो रहे हैं । लगभग १ करोड़ २० लाख में से ३० लाख कन्याओं को जनम लेने से पहले मार दिया जाता है । अगर यही हालात बरकरार रही, तो सन २०११ तक हमारे देश के दो करोड़ तीस लाख युवकों को विवाह करने के लिए लड़कियाँ नहीं मिलेंगीं । उन्हें अविवाहित जीवन बिताना पड़ेगा । इसलिए प्रसूति पूर्व तकनीक अधिनियम १९९४ को सख्ती से लागू किये जाने की जरूरत है । भ्रूण हत्या करने वाले क्लीनिकों को सील कर जुर्माना क साथ-साथ सजा के प्रावधान की आवश्यकता है । फ़िलहाल हमारी पूर्व प्रधान मंत्री, आदरणीया श्रीमती इन्दिरा गांधी बालिका सुरक्षा योजना के तहत भारत सरकार द्वारा पहली कन्या के जन्म के बाद स्थायी परिवार नियोजन करने वाले माता-पिता को २५०००/-, दूसरी कन्या के बाद स्थायी परिवार नियोजन अपनाने वाले माता-पिता को २००००/- रुपये, प्रोत्साहन राशि के रूप में प्रदान किये जा रहे हैं । यह सरकार की ओर से एक सफ़ल प्रयास है । ईश्वर इसमें हमारी सरकार को पूर्णतया सफ़लता प्रदान करे ; मेरी तो यही प्रार्थना है । हो सकता है, यह प्रयास बालिकाओं पर हो रहे अत्याचार का समूल नाश न कर सके, लेकिन यह एक सशक्त प्रयास है ।
गंभीरता से तह तक उतरा जाय, तो बढ़ते दहेज का प्रचलन भी बालिका भ्रूण हत्या का एक बड़ा कारण है । माता-पिता को बेटी की शादी के लिए भारी-भरकम उधारी करनी पड़ती है , जो उनके लिए जीवन भर का आर्थिक बोझ बनकर रातों की नींद हराम कर देती है । कभी-कभी तो इस उधारी को न लौटा पाने की सूरत में उन्हें आत्महत्या भी करनी पड़ती है । भविष्य की यही भयावह सोच, उन्हें बेटी का कातिल बना देता है । अगर इस दहेज प्रथा को रोकने की दिशा में कानून बनाकर पूरी सख्ती नहीं बरती गई, तो वह दिन दूर नहीं कि यह दहेज पूरे महिला समाज को निगल जायगी ।

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