Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कर्म ही जीवन है

 

किसी गाँव में एक पिताअपने  चार संतान के साथ रहते थे  उनके चारो संतान आपस में इस बात पर झगड़ते रहते थे कि  आज किसने घर का कितना काम किया और कौन औरों से कम किया  एक दिन पिता ने चारो बेटों को अपने पास बुलाया और कहा,’ मैं आज तुमलोगों से यह जानना चाहता हूँ कि तुमलोगों के बीच जो लड़ाई – झगड़े बने रहते हैंआखिर इसका कारण क्या है ? बड़े बच्चे ने बताया,’ पिताजी ! छोटू दिन भर खेलने में लगा रहता हैदूसरा और तीसरा तबीयत खराब होने का बहाना बनाकर घर का काम नहीं करते हैं  माँ  ! उन्हें डाँटती तक नहीं ,बल्कि इन सबों का काम मुझसे करवाती है  कहती है,; तुम बड़ा भाई है और ये लोग तुम्हारे छोटे भाई हैं ; इनसे प्रतिद्वन्दिता कैसी ? पिता सुनकर हँस पड़े   बोलेबेटा ! कौन कितना काम किया और किसने नहीं कियायह  देखकर मनुष्य को हामेशा अपना कर्म करना चाहिए  मनुष्य का जीवन कर्म करने के लिए हुआ है  तुम हाथ की उँगलियों को देखोकैसे दिन भर काम करती हैं  तब जाकर घर में दो रोटियाँ आती हैं  फ़िर भी वे थकती नहीं हैं , बल्कि शाम के वक्त अपने भूखे मालिक को बड़े प्रेम से रोटियाँ तोड़कर खिलाती हैं  वह कहाँ 

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