खून से सड़कें लाल हैं,तुम्हारी नजर में हुआ कुछ भी नहीं
कटे सर नाच रहे अपनी ही छाती पर, हुआ कुछ भी नहीं
लगता घायलों की चीत्कार तुम्हारे कलेजे को
चीरती नहीं, तभी तो कहते, हुआ कुछ भी नहीं
तुम इनसान नहीं, दरिंदा हो इस धरा पर
तुम्हारा इलाज सिर्फ़ मौत है,दवा कुछ भी नहीं
ऐसे भी कौन सुबह आयेगी, कोहराम लेकर कौन
सुबह होगी अंतिम, मनुज जानता कुछ भी नहीं
फ़िर भी सुबह के स्वागत में,रात को संजोता मनुज
सुबह देखता, जीने के लिए बचा कुछ भी नहीं
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