Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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खत उसका जब जलाने लगा

 

खत  उसका जब  जलाने लगा

शब्द – शब्द  आँसू बहाने  लगा


हुस्न तो  चुपचाप था , इश्क

का  ही पावँ  लड़खड़ाने लगा


धरती  –  अम्बर काँप उठा

बसंत  मरसिया  गीत गाने लगा


तमाम उम्र जिसके साये में गुजरा

आहिस्ता– आहिस्ता दूर जाने लगा


पत्ता  – पत्ता , यह कहने  लगा

गुल  कहाँ  है,बाग तो जाने लगा

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