खत उसका जब जलाने लगा
शब्द – शब्द आँसू बहाने लगा
हुस्न तो चुपचाप था , इश्क
का ही पावँ लड़खड़ाने लगा
धरती – अम्बर काँप उठा
बसंत मरसिया गीत गाने लगा
तमाम उम्र जिसके साये में गुजरा
आहिस्ता– आहिस्ता दूर जाने लगा
पत्ता – पत्ता , यह कहने लगा
गुल कहाँ है,बाग तो जाने लगा
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