Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ख्वाबों के जलते दीये तो महफिल में हो

 

है मुझे भी मालूम शम-अ-कुश्ता1, दरखुरे महफिल2 नहीं
होता,मगर मेरे ख्वाबों के जलते दीये तो महफिल में हो

राह दिखलाये कौन यहाँ, कोई रहबर3 नहीं, अपना
गुहार लेकर इन्सां जाये कहाँ,जब वह मुश्किल में हो

बज्म-हस्ती4 अपनी आराइश5 पर न इतना गुमान करो
जिंदगी भी रहे-मंजिल में है, तुम भी रहे-मंजिल में हो

काँपता फिरता है, खुदा तुम्हारा रंगे-शफक6को हसार7पर
हम तो मजबूर हैं ,तुम किस मुश्किल में हो


1.बुझा हुआ चिराग 2. महफिल के लायक 3.पथ प्रदर्शक
4.जीवन रूपी महफिल 5. शृंगार 6. प्रातरू और शाम की लालिमा 7. पहाड़



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