Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कोयल काली

 

कोयल काली


अहिंसा  की   असिधारा   पर , अपने मुक्त

पंखों   को   फ़ैलाकर  ,  नील   नभ   की

दुष्कर   यात्रा  करने  वाली , कोयल  काली

तेरा  वास  दूर छाया  वन  के ऊँचे तरु पर

तेरा  न  कोई  गुरु , कौवे  के बीच पली तू

अंधकार की है छाया का रूप तू, फ़िर किसने

सिखाया   तुझको  , चुन  –  चुनकर   लघु -

लघु , तृण  – खर - पातों  से  नीड़  बनाना

डाली – डाली  पर फ़ुदक - फ़ुदक कर,मर्माहत

जग को उल्लसित करने,लय-रस-छंदों में गाना


कौन बताया  तुझको,आकाश की गहराई

को  मापना  और  सागर  को  थाहना

किसके  बहकावे  में  आकर  तू अपने

स्वर्ण- हृदय को काले रंग में रंगवा लाई

जो  चाहकर   भी  तू   किसी   कवि

मन  की   कल्पना   न   बन   पाई

न  ही  कनक  पिंजरे  में तू गई पाली


कौन   झील ,  कैसा  वहाँ   का   पानी

जहाँ  तू  रोज  नहाया  करती  , जिसने

तेरे रंग-रूप को,निखरकर फ़ूटने नहीं दिया

काली     पड़   गई    तेरी     पंखड़ी

भले- बुरे   की  जब तुझको पहचान नहीं

तू    क्या   ज्वर -  भीति   जग   को

सुधायुक्त      कर     सकेगी   बावड़ी

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