क्या कहती यह पायल समझ आता नहीं
इस कदर कोई अपना दिल बहलाता नहीं
लहरों में खिला कमल –सा रूप, प्यार के
समंदर में नहाये बिना कोई पाता नहीं
ऐ मोहब्बत , तेरे वश में क्या कुछ नहीं,फ़िर
क्यों तेरा ग़म, पैमाने वफ़ा को भूल पाता नहीं
जब तक कोई ख़्वाहिश रुख़सत न हो दिल से
तब तक किसी को रोना आता नहीं
जब चढ़ता इश्क का बुख़ार ,जुज़ वस्ल के
सिवा, दिल को और कुछ भाता नहीं
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