माना कि मय जिंदगी के लिए जहर है
मगर यह मुझे खुद से भी अजीमतर है
जमाने ने किया है, जो वार मुझ पर
सीने में छुपा अब भी वह नश्तर है
एक दिन लूँगा जमाने से इन्तकाम
यह तय है, जोश अभी भी अंदर है
पहले पता कहाँ था,आदमी, आदमी पर
पड़ता भारी भी इस कदर है
सुना था, उसके हुक्म के बिना, पत्ता भी
नहीं खड़कता,तो फ़िर यह किसका कहर है
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