मानव ! तुम सबसे सुंदर
यहजगघर, स्वर्ग खंड बना रहे
तुमने क्या कुछ नहीं किया ईश्वर
स्वर्गलोकसे देवोंका अतुल
ऐश्वर्य , शोभा, सुंदरता, प्रीति को
धरापर वाहित कर यूथिका में
रंग - बिरंगे फ़ूलों को बिखराकर
मधुवन में गुंजते को भ्रमर बनाया
आम्रकुंजमें बनाया पिकी मुखर
नील मौन मेंअम्बर को गढ़ा
सौरभ में बनायापवन नश्वर
मन की असीमता में,निवद्ध ग्रह-
दिशाकाश प्रतिष्ठित कर
तन के भीतर माटी की सुगंध भरा
और कहा, सूरज –चाँद-तारे तो हैं
ही सुंदर, मानव ! तुम सबसे सुंदर
तुम्हाराअंतर स्वर्ण रुधिरसे थर-थर
फ़िरभी तुमअपनी महत्वाकांक्षा से
स्वर्ग क्षितिजसे रहते उठकरऊपर
तुम्हारीअलकों को छूकर शीतल समीर
बहताजब धरा पर , तुम उसेअपने
उरमें भर जीवन कारंगता पदतल
तुम्हारी बाँहोंमेंबंधकर , जगती का
सुख-दुख विस्मृत होता,तुम्हारा हृदय समंदर
तुमइसी तरह जगअंधकार को हरने
अपने करमें लेकर स्वर्गशिखा
विचरते रहो , जब तक हैयह धरा
लिखते रहो,कृति स्तम्भ से उठाकर अपना
करसे अम्बर पट का ज्योतिर्मय अक्षर
तुम्हाराइतिहास अम्बर ,तुम सबसे सुंदर
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