Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

मंजिल मिलेगी,दो कदम चलकर तो देख

 


मंजिल मिलेगी,दो कदम चलकर तो देख

है उजाला  भी, बाहर निकलकर तो देख


यहाँ  अपना- पराया  कोई  नहीं  होता

अपनी  नजरों  को  बदलकर  तो  देख


दुश्मनी भी दोस्ती में बदल सकती है,एक

बार अपनी  तरफ़  से पहल कर तो देख


कौन  कहता , नज़रों की गहराई में डूबा

निकल  नहीं  सकता, उछलकर तो देख


बुरा है क्या इसमें,कोई चाहता है दिल से 

तुम्हें  सँभाले  रखना, सँभलकर तो देख

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ