मंजिल मिलेगी,दो कदम चलकर तो देख
है उजाला भी, बाहर निकलकर तो देख
यहाँ अपना- पराया कोई नहीं होता
अपनी नजरों को बदलकर तो देख
दुश्मनी भी दोस्ती में बदल सकती है,एक
बार अपनी तरफ़ से पहल कर तो देख
कौन कहता , नज़रों की गहराई में डूबा
निकल नहीं सकता, उछलकर तो देख
बुरा है क्या इसमें,कोई चाहता है दिल से
तुम्हें सँभाले रखना, सँभलकर तो देख
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