Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मेरा रंग – रूप बिगड़ गया

 

मेरा   रंग –  रूप  बिगड़  गया

मेरा  प्यार  मुझसे  बिछुड़ गया


अब  ढूँढूँ  तुझे  मैं  कहाँ- कहाँ

मेरा  यार  तू   किधर    गया


तुम  बिन  जीना  दुशवार हुआ

जीवन कण- कण में बिखर गया


कर मुझे  तकदीर की बेरुखी के 

हवाले, मेरा  यार तू किधर गया


दीखे न  जहाँ से  यार की गली

क्यों  तू   ऐसा   सफ़र   गया

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