Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मेरे ख़ुदा , मेरे कातिल की दुआ कबूल करना

 


मेरे  ख़ुदा , मेरे  कातिल  की  दुआ  कबूल करना

जिस  चीज  की  आदत हो, उसे न मुश्किल करना


उस  संग मैंने  दोस्ती  की  है, जमाने से दुश्मनी

लेकर, इश्क  की  चोट  से मुझे न विस्मिलकरना


उम्र  सारी  मायूसी  में  गुजरी  है मेरी, तर्के- वफ़ा2

उसकी,  निशानी   है , और  क्या  हासिल  करना


वफ़ा  के  छींटे  भी  न पड़ीं , कभी उस बेवफ़ा पर 

खुदा  मेरे  सोजे-दरू3 को न गर्मी-ए महफ़िल करना


वो  गाफ़िल  बड़ी  होशियार है,जब न मिलता दोस्त 

दुश्मन से करती इस्तहाद4,उस पर न महमिल5करना




  1. घायल  2.सम्बन्ध विच्छेद 3.भीतरी ज्वाला  

4. मेलजोल  5.परदा

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