मेरे ख़ुदा , मेरे कातिल की दुआ कबूल करना
जिस चीज की आदत हो, उसे न मुश्किल करना
उस संग मैंने दोस्ती की है, जमाने से दुश्मनी
लेकर, इश्क की चोट से मुझे न विस्मिल1 करना
उम्र सारी मायूसी में गुजरी है मेरी, तर्के- वफ़ा2
उसकी, निशानी है , और क्या हासिल करना
वफ़ा के छींटे भी न पड़ीं , कभी उस बेवफ़ा पर
खुदा मेरे सोजे-दरू3 को न गर्मी-ए महफ़िल करना
वो गाफ़िल बड़ी होशियार है,जब न मिलता दोस्त
दुश्मन से करती इस्तहाद4,उस पर न महमिल5करना
- घायल 2.सम्बन्ध विच्छेद 3.भीतरी ज्वाला
4. मेलजोल 5.परदा
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