Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मुझे, मेरा भविष्य बताना

 

मुझेमेरा भविष्य बताना




प्रभु ! आज मैं तुमसे यह कहने नहीं  आई हूँ

कि मेरी उम्र बढा दो मुझे और हैजीना 

बल्कि मैं तुमसे यह जानने आई हूँ कि और 

कितने दिनों तक मुझे है दुख के ज्वलित 

पिण्ड को हृदय समझकर,उसका भार है उठाना


मैं हार गई  हूँअपने जीवन - रण से

                        मेरे संगीसाथी, मुझे छोड़ अकेला

मनुज जनम की निर्घिन जाति  को 

स्वर्ग लोक को चले गयेकब  के

और मुझे कितने दिनों तक पातक में

है बराबर का हिस्सेदार बनकर रहना

गनीमतहै तुमने पापियों का भी भविष्य

बनाया, आज मेरा भविष्य मुझे बताना


हिल रहा है यह भुवन,कुत्सा के किन आघातों से

क्या वह नाद  तुमको  सुनाई  नहीं पड़ता

यहाँ जन्म का उद्देश्य कृति  और धन  है

भग्न तन रुग्ण मन विषन्न वन है

घन तम से आवृत यह धरती है

तुमुल तरंगों की यह तरणी है ,भलाऐसे में

कोई जीवन का भव -सागर कैसे पार करेगा

यह भुवन अगर स्वर्ग बना रहेतो कोई मनुज 

अपनी मृत्तिका दीप को बुझाना क्यों चाहेगा




प्रभु ! तुमने इस संसार को,बहुत सोच-समझकर बनाया 

पग -पग पर शीत ,स्निग्ध नव रश्मि को छिड़काया 

फिर भी एक-एक कर सबों से पूछकर देखो,इस दुनिया में

आकर कौन  मनुज खुश रह पाया ,चतुर्दिक द्वेषों के

कुंत  रहते हैं तने हुए , मानव जीते रक्त सने


                         यहाँ कुसुम- कुसुम  में  है वेदना  भरी हुई

नयन अधर में हैशाप कातरंग लहरा रहा

                        चंदन में   है  कामना वह्नि छिपी  हुई

प्राणों की यमुना में रहता जहर भरा

अर्द्ध दग्ध रहती तरु की फुनगी कोयल 

की बोली से तरु का डाल दहक रहाअब 

तुम्हीं बताओ क्या आसान है यहाँ जीना

इसलिए प्रभु आज मेराभविष्य मुझे बताना

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