गमे जिंदगीसेघबड़ाकरचलाआता हूँ
न पाकर तुझे, बड़बड़ाकर चला जाता हूँ
लोग कहते ,पागल-दीवाना, सिरफ़िरा मुझको
पत्थर से प्यार जताकर चला आता हूँ
मज़लिसे–यार में तो जगह न मिली मुझको
मज़लिसे दीवार से हाल बताकर चला आता हूँ
देखता हूँ जब अपने को तुम्हारे पास बैठा
जिंदगी, फ़िर मिलूँगा बताकर चला आता हूँ
मैं वह पथिक हूँ, जो अपने गर्दिशे आसमां का
सुबह- शाम , सैर करवाकर चला आता हूँ
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