Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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न पाकर तुझे, बड़बड़ाकर चला जाता हूँ

 

गमे जिंदगीसेघबड़ाकरचलाआता  हूँ

 पाकर  तुझे, बड़बड़ाकर  चला  जाता हूँ


लोग  कहते ,पागल-दीवानासिरफ़िरा मुझको

पत्थर  से  प्यार  जताकर चला आता  हूँ


मज़लिसेयार  में तो जगह  मिली मुझको

मज़लिसे दीवार से हाल बताकर चला आता हूँ


देखता  हूँ जब अपने  को तुम्हारे पास बैठा

जिंदगीफ़िर  मिलूँगा  बताकर चला आता हूँ


मैं वह पथिक हूँजो अपने गर्दिशे आसमां का

सुबहशाम , सैर  करवाकर  चला  आता हूँ


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