Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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नहीं कोई बात, मुझ दिल - बीमार से

 

क्यों  करते  नहीं कोई बात,  मुझ दिल - बीमार से

कहते, कटते  हैं लोग  यहाँ फ़ूलों  के  भी धार से


जब  तक  ऊँची  न हो , ज़मीर की लौ, तब तक

होते  नहीं  प्राण  रौशन, आँखों   के   दीदार  से


अखड़ियों  में जल  रहा, उसके जुल्मों, अव्वली का

चराग,लौ शोला न बन जाये,उसकी सूरते तकरार से


मोहब्बत  की राह में कैसी- कैसी मुसीबतें हैं आती

न  चाहकर भी  दिल-ए-हाल बताना  होता यार से


जुनूं   दिला   जाता   रह-  रहकर  उसकी  याद

तालए- बेदार   हार   जाता, दिल  -ए -बेकरार से



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