Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

साथ न साकी है, न सहारा

 


साथ   न  साकी  है, न  सहारा, न  कोई  राहबर है

शामे- जिंदगी  के  सफ़र  का यह  कौन  सा  डगर है


दूर    तलक   कोई   आश्ना  नहीं  मिलता , केवल

नाला - ओ – फ़रियाद है, मंजिल  भी  गर्दे4  सफ़र  है


जिंदगी  जब  से  जोफ़-ए-पीरी5  को  अपने  कंधे  पर

उठाना  छोड़ी, पाँव  भी वहीं रुक गये,उसे किसका डर है


मेरे  साथ  चलने  वाले  सभी  दर्द-मंद गम के अंधेरे में

कहीं गुम हो  गये, अब मिलती नहीं उनकी कोई खबर है


किससे  करूँ  शिकायत, मेरे  जख्म6 से  जो  गिरता  है

उसे पलकों से उठाती हूँ,मेरा खुदा मुझसे रूठा इस कदर है



  1. पथ-प्रदर्शक  2. पहचाना  3. रुदन ओ प्रार्थना 

4. धूल भरा  5. बुढ़ापे की कमजोर  6 .घाव


Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ