Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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’ सैरेगु्ल ’ (ग़ज़ल-संग्रह) की समीक्षा

 

 

ग़ज़लकार-- डॉ० श्रीमती तारा सिंह             समीक्षक---डॉ० नरेश पाण्डेय चकोर
संस्थापक—स्वर्गविभा सम्पादक                    —अंग माधुरी
सम्पर्क—1502,सी क्वीन हेरिटेज़                     बोरिंग रोड ( पश्चिम )
प्लॉट—6, सेक्टर—18,सानपाड़ा                       59,गाँधी नगर,पटना ---800001
नवी मुम्बई--400705                                                        मो 0 ---09430919959
मो 0—09322991198



डॉ० श्रीमती तारा सिंह ,सुप्रसिद्ध लेखिका एवं कवयित्री हैं । अभी तक इनकी २० काव्य-संग्रह, ७ ग़ज़ल-संग्रह, १ उपन्यास एवं १ कहानी-संग्रह प्रकाशित हुए हैं ,जिन्हें पाठकों ने काफ़ी सराहा है । समीक्ष्य पुस्तक, ’ सैरेगुल ’ एक अति सुंदर ग़ज़ल-संग्रह है ।


इसमें इनकी अस्सी ग़ज़लें संगृहीत हैं । डॉ० तारा सिंह लोकप्रिय साहित्यकार हैं ,तभी तो इन्हें देश के लगभग दो सौ संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है । अंग जनपद गौरव डॉ० तारा सिंह ने लोकप्रिय वेबसाइट ’ स्वर्गविभा ’ की स्थापना मुम्बई में की है,जिसके माध्यम से वे विद्वानों को हर वर्ष सम्मानित करती हैं ।


लेखक या कवि प्राय: अपने या अपने आसपास की घटी घटनाओं पर, सुललित ढ़ंग से रचना करते हैं । डॉ० तारा सिंह स्वयं ’ अपनी बात ’ में लिखती हैं--- ” इसमें जितनी भी ग़ज़लें समाहित हैं, लगभग सभी मेरी और आपकी, जानी-पहचानी घटनाओं और विचारों पर आधारित हैं । ” इनकी कुछ ग़ज़लें प्यार-मुहब्बत,खुले आसमान ,प्रकृति छटा , आदि की काल्पनिक बातें भी हमारे सामने दर्शाती हैं । कवयित्री का मानना है कि प्यार, व्यापार नहीं है , खुदा की इबादत है ------


प्यार सौदागरी नहीं, इबादत है खुदा की
तुम्हारे बेखबर दिल को, खबर जरूर था----------------पृष्ठ--१३


तारा जी को ईश्वर पर भरोसा है,पर कभी-कभी शंका हो आती है । स्वभावत: जब आदमी काफ़ी दुखी हो जाता है, तो शंका होना स्वभाविक है ----


सुना था उसके हुक्म के बिना, पत्ता भी
नहीं खड़कता, तो फ़िर यह किसका कहर है --------- पृष्ठ -१४


इसी बात को कवयित्री आज की हालात पर कहती है ------


रक्षक भक्षक बन चुका
अल्ला के घर हिफ़ाजत नहीं है ------------ पृष्ठ—१५


प्यार में हारजीत की परवाह नहीं की जाती । कहा गया है---- प्यार अंधा होता है । इस पुस्तक की ७ वीं ग़ज़ल की दो पंक्तियाँ देखी जा सकती हैं ----


इश्क है, बाजी लगा दिया
हार और मात की क्या बात करें ।------ --पृष्ठ—१७





जिससे कोई प्यार करता है तो उसकी हर चीज उसे प्यारी लगती है । प्यार में प्रेमिका के पायल ,भला प्रेमी को अच्छा क्यों न लगे । इस समय उसे पत्थर से तराने की आवाज सुनाई पड़ती है ।


जब बजती है, पाँव की पायल उसकी
पत्थर- पत्थर से निकलते तराने हैं ----पृष्ठ—२१


हुस्न वालों की जात नहीं पूछी जाती है । कहा गया है—जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ग्यान । कवयित्री की दो पंक्तियाँ देखें ---
हुस्न वालों की बात न पूछ
होती है क्या उनकी,जात न पूछ ------पृष्ठ—२३


भारत की सामाजिक स्थिति पर कवयित्री काफ़ी चिन्तित है । चोरी—डकैती, खून-खराबा और आतंकवाद पर तारा जी काफ़ी दुखी हैं ----
महाकाल बन आतंकी घूम रहा गलियों में
आदमी का मरना कितना आसान हुआ --------पृष्ठ—२४


कवयित्री तारा जी शहीदों को याद करती हैं और उनके प्रति दो बूँद आँसू अर्पण करना चाहती हैं-
वृथा न जायगा, दो बूँद आँसू तुम्हारा
शहीदों के नाम, आँखें सजलकर तो देखो -------पृष्ठ—२८


तारा जी काली माँ की पूजा-आराधना करती हैं । वे प्यार को पूजा मानती हैं और पूजा को जिंदगी ------
प्यार पूजा है, प्यार जिंदगी है
जमाना चाहे इसे रिंदखाना कहे -------पृष्ठ—४९


कवयित्री तारा में देशभक्ति की भावना भी भरी हुई है । वे भारत के वीर जवानों को ललकारती हुई कहती हैं -----
उठो,जागो भारत के वीर नौजवान
हिन्द कराह रहा है, हवा है लहुलूहान ------पृष्ठ---७८


आलोच्य पुस्तक के अंतिम ग़ज़ल में अपनी भावना को व्यक्त करती हुई कहती हैं----
कैसे कोई भरोसा करे किसी पर
दोस्त सा न कभी, दुश्मन देखा है
चाहत का हर फ़ूल खिले जहाँ
ऐसा न कोई, चमन देखा है -----पृष्ठ---९०

 


कवयित्री एक सफ़ल ग़ज़लकार हैं । इनकी ग़ज़लें फ़ुदकती छोटी-छोटी चिड़ियाँ सी सुहावन, मनभावन हैं । भाषा सरल एवं सुगम है । पुस्तक की छपाई- सफ़ाई अच्छी है । बँधाई सजिल्द है । आवरण नयनाभिराम है । मीनाक्षी प्रकाशन,नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित, ९६ पृष्ठीय पुस्तक का मूल्य १००/- रुपये रक्खा गया है । इतनी सुन्दर पुस्तक के प्रणयन के लिए कवयित्री को बधाई ।

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