उत्कंठाओं भरा काव्य –संग्रह है ‘‘अंकिता‘‘
समीक्ष्य पुस्तक — -- अंकिता समीक्षक— श्री कृष्ण मित्र
कवयित्री ---- डा० श्रीमती तारा सिंह, नवी मुम्बई बरिष्ठ साहित्यकार व पत्रकार
मो ०--- 09322991198 गाजियाबाद; मो०--09818201978
डा0 तारा सिंह के काव्य संग्रहों की श्रृंखला में ‘‘अंकिता” अपने पूर्व काव्य संकलनों की भाँति अनेक कौतुहलों और उत्कंठाओं से भरा साहित्य का सौम्य काव्य संकलन है । ’पंचानन का सपूत मनुज” की इस पंक्ति से ही कवयित्री की काव्य प्रतिभा का आंकलन किया जा सकता है ----‘‘पास रह जायेगा, धर्म कर्म और निष्ठा, जब मृत्ति का अनल बुझ जायेगा‘,‘ तब वही दिलायेगा हमें प्रतिष्ठा’ । इस लिये ’ ’चाहत के उन पलकों में प्रवेश कर हृदय के उस अग्यान देश में जाकर क्या रहना, जहाँ रहती हृदय कम्पन की नीरवता ‘‘ ।
अंकिता डा0 तारा सिंह का प्रतिनिधि काव्य संग्रह है । इसके माध्यम से पुरातन के प्रति आदर और नूतन के प्रति आग्रह पूर्ण उत्साह का सर्जन है । यह नये युग की आत्मा के अनुकूल स्वरों को झंकृत करता एक अनूठा प्रयास है । इस नये संग्रह के लिये कवयित्री की प्रतिभा को अंकिता के माध्यम से डा0 तारा सिंह नारी की प्रतिष्ठा के प्रति भी सजग हैं । नारी की स्मृतियों में पूजा और पावनता का संगम है । काव्य में प्रकृति का जो स्वरूप नारी में विद्यमान है , कवयित्री उसके प्रति विनम्र और प्रतिष्ठा प्रदान करने की बात स्वीकार करने को तत्पर है । विशेष कथनीय यह है कि प्रस्तुत संग्रह में बोझिल शब्दों से परहेज किया गया है ।
‘स्वर्णधन’ कविता के माध्यम से कवयित्री ने प्रकृति के ग्रीष्म तपित और शापित धरती की पुकार को सुनने का प्रयास किया है । तृण -तृण में पुलकावलि भरने के लिये पृथ्वी की स्वर्ण रजकणों का अपना महत्व होता है । ऋषि -मुनियों की तपो भूमि आज भी स्वर्ग की पंक्ति में भारत की धरती पर सुशोभित है और यही इसका वास्तविक स्वरूप है ।
दिल्ली जो चतुर्दिक रेत की आँधियों से आहत है । कविता की सूक्ष्म विशेषताओं में मुस्कुराते फूल और वसुधा में जलनिधि का प्रलय सृजन और घोर तम में छिपा प्रकाश उत्सुक नयनों से बाट जोह रहा है । यही कारण है कि उसने दिल्ली को सम्बोधित कर कहा है कि ‘‘दिल्ली तू मेरा कहा मान, देश की जनशक्ति को तू पहचान । इसके पहले कि तेरी रेशमी साडी को आकर तेरा ही सिपाही जला जाये, तू रेशमी साड़ी को जनता पर कर दे कुरबान’ । इन पंक्तियों के द्वारा डा0 तारा सिंह वर्तमान को लक्षणा के माध्यम से बताना चाहती हैं । केवल दिल्ली के सम्बोधन से ही संग्रह को ऐसा शीर्षक मिला है जिसमें अभिधा, लक्षणा और व्यंजना शब्द की तीनों शक्तियाँ अनुगंजित हो रही हैं ।
’परिवर्तन” , ’नया इतिहास” , ’तुम अमर मैं नश्वर”,’ पर्यावरण” और ‘‘मैं सन्त हॅूं, मैं मुकुट नहीं माँगूँगा’ जैसी भव्य भाषा की कविताओं ने संग्रह को सजाने का काम किया है । यही नहीं ’मानव तुमसे सबसे सुन्द्र” में भी कवयित्री की काव्यमयी अभिव्यक्ति एक नवीन भव्यता प्रदान करती है । ’गाँधी”, शीर्षक में भी डा0 तारा सिंह का इतिहास बोध झलक रहा है । ’वसन्त” की कविता में दी गई पंक्तियों से काव्य की नवीन अनुभूतियों के दर्शन होते हैं । जिस वसन्त के अलिंगन को पाकर माटी की छाती में चेतना उमड़ आती है, उसे ढूँढ़कर रंगों के सातो रंग संग जीवन को मधुमय बनाया जा सकता है ।
अंकिता की सभी कविताओं में तारतम्यता के साथ- साथ भूत, भविष्यत और वर्तमान की सभी अनुभूतियों को प्रेरित किया जा सकता है । संक्षेप में कहें तो अंकिता की कवितायें काव्य की विभिन्न शैलियों का एक लेखा –जोखा प्रस्तुत करती है । डा0 तारा सिंह को इस नवीन काव्य संग्रह के लिये बधाई । वे सदैव साहित्य के कोष को इसी प्रकार भरने में लगी रहें ।
कृष्ण मित्र
एम0 ए0, साहित्य रत्न
107, राकेश मार्ग, गाजियाबाद
मो0: 09818201978
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