सुबह से शाम , शाम से रात हुई
अब तक न सुलह की कोई बात हुई
दर्द दिल का बाताऊँ किससे
एक बार न उनसे मुलाकात हुई
रोज कर जाती है मिलन का वादा
शाम कहती, कहाँ कोई बात हुई
आईना रू मेरा, पूछता है मुझसे
इश्क की यह कैसी जात हुई
जमाने भर का ना-इलाज दर्द देकर
तड़पाये रखता, यह कैसी बात हुई
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