Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तुम पे मरता हूँ इतना भी नहीं

 

तुम  पे  मरता  हूँ  इतना  भी नहीं

कि   तुम बिन जीन   सकूँ


मौजे-खूं1   सरसे उतरजाये

तो खूने   जिगर पी न  सकूँ


समंदर  से  मिले तुम, मुझको सनम

अपनी   प्यास  बुझा  भी  न  सकूँ


यह  किस्सा  कहने  के काबिल नहीं 

मगर  बिन  कहे  रह  भी  न  सकूँ


तुमको अच्छा कहा जिस-जिसने,उनकी

खैर, तुम्हारी  खैर मैं मना भी न सकूँ


तुमको  बद-अहद2  वो बेवफ़ा कहूँ या

नहीं, सोचता  हूँ, तो सोच भी न सकूँ



  1. रक्त की तरंग  2. दगाबाज

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