Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तुम्हारी यादों की स्मृति

 

तुम्हारी यादों की स्मृति


तुम्हारी  यादों की स्मृति की बस्ती

फ़ैलकर अब आसमां हो गई

मन – निलय में नहीं समाती

हृदय की नीरवता के चरण चिह्न से

टकरा – टकराकर टूट-  टूटकर

अश्रु  बन आँखों से  झरने लगी


यह औरकुछनहींकेवल  स्फ़ुलिंग है

मेरे उसज्वालामयीज्वलनकाजो

अब  तक मेरा  भावी  स्वप्न बनकर मेरे

पीड़ित अंतर की एकाकी शय्या पर सो रही थी

आज  शत भावों  से विह्वल होकरविद्युत –सी

जलकर तुम्हारी याद दिलाने फ़िर से जल उठी


इसे  चाहिए धवल,मनोहर,सुंदर,स्वच्छ

चन्द्रबिंब से अंकित एक निशीथ 

और  गारहा शीतल पवनपुलकित

जो  ले जा सके इसे धूल,धूम,कोलाहल

थकावट के उस  पार , जहाँ शीतल-

जल  से पूर्ण  मंदगामी धारा है बहती 

और सूंदरता,प्रीतिपाश में बँधी रहती


क्योंकि ये स्मृतियाँ,तुम्हारी प्रीति डोर से

मेरे उर  को सपने में भी बाँधे रखती

रखकर  अपना अधरमेरे  अधर पर

मुझे  सीने से लगाये खींची सोई रहती

मेरे  अरमानोंके करवट पर व्यथा बन 

जागती  रहतीलहरों में प्यास  भरी है

भँवर  पात्र से हैखालीमुझसे कहती


जीवन संघर्ष चलता रहेमैं विफ़लविकल

जीती रहूँमेरी  आँखों  के  काले तारे में

तुम्हारा  सुंदर  मुकुर सा  चित्र दिखलाती

मुझमें  मादकताकी लहर उठाकर

मेरे अंग अंग में सिहरन भरती

अनंत में विचरती कादम्बिनी को दिखलाकर 

मुझको  अपने  भुजपाश में सिमटने कहती


अब  तुम्हीं कहोजीवन का संचित सुख, जो

अभी तक केवल  एक सुंदर मूर्त्त बना हुआ है

हृदय  खोलकर अपना उसे मैं कैसे दे दूँ

अपने  जीवनके  संचित  बल – वैभव से

जिसे मैं सत्कृत करती आई,आज उसे आनंद 

शिखर पर चढ़ता देखपलकें कैसे झुका लूँ

मैं इसी द्विविधा सेथके पथिक की तरह

रहती हूँ परेशान, पर दुनिया को कैसे बता दूँ

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