तुम्हारे इशारे पर नर-स्वप्नों की दुनिया डोलती
प्रिये ! है कौन वह अमृत का प्रवाह्
जिसे तुम रोकना चाहो, और वह रुके नहीं
है कौन नर इतना बली, तुम्हारे सम्मुख
तुम जिसे मोड़ना चाहो और वह मुड़े नहीं
तुम चाहो तो जमीं पर आसमान उतर आये
तुम्हारे हाथों में है जग की रोशनी , तुम उँघती
सुषमाओं पर चढकर आह्वन करो, तो हवा में
तैर रहा जो स्वर्ग , वह भी मिट्टी पर उतर आये
तुम्हारे इशारे पर नर के स्वप्नों की दुनिया डोलती है
कौन कहता है प्रिये ! इस धरा पर, तुम अबला नारी हो
तुम्हारे आँसुओं की बाढ देखकर, गंगा मात हो जाती
वहीं हिमालय के शिखर पर ठहर जाती, तुम्हारी मीठी
आवाज को सुनकर प्राची का रुद्ध कपाट खोलकर
आकाश हिलोरे लेता , तुम रक्त मांसमय एक अप्रतिम
कुसुम हो , कहते हैं , धरा पर दौड़ रही जो दीप्ति -सी
हरियाली वह तुम्हारे ही कुसुमित तन की छाया है
तुम नर हृदय की पाहुनी, चाँदनी का साया हो
तुम जिसे एक बार गले लगा लेती हो दिल से
उस मनुज मन का शिखर चूर्ण -चूर्ण हो जाता
उसके जीवन की श्रांति और विश्रांति के बीच
की रेखा मिट जाती, अनिद्र रहने लगता तब से
हर वक्त यही सोचता रहता, कहीं देह कूदकर
बाह्य त्वचा से होकर बाहर न निकल जाये
इसलिए वह प्राण गंगा की बात नहीं करता
बल्कि जिह्वा को दबाये रखता , दाँतों से
तुम्हारी छत्र छाया में रहकर, कौन ऐसा उद्यमी नर होगा
जो अपने खंडकर जीवन का जीर्णोद्धार नहीं चाहता होगा
तुमको आजादी और क्या चाहिये,तुम तो स्वयं उन्मादों की
चुनौती हो, तुम्हारी वेदना की शिखर से यह भुवन भी
तुच्छ लगता,तुम नर हृदय की तुला हो,तुम्हारा जग चिर
निर्दोष , चिर सुंदर होता, तुम ममता, करुणा की देवी हो
कहते हैं अत्यधिक धन से मनुज जीवन में
पाप उभर आता है, और निर्धन होने से
जिन्दगी बिखर जाती है, लेकिन तुम्हारी
छत्र छाया में सुयश ही सुयश मिलता है
तुम्हारी विरह की हर टीस , हृदय में नया स्वाद
जगाती है, कल्पना सदैव मीठी होती,तुम कल्पनासे
भी अधिक मीठी हो, तुम त्रिलोक विजयिनी
तुमको भला भय किसका, तुम ही तो कल्याणी हो
तुम्हारे बिना जीवन का सम्मोहन उतर जाता
लगता , ईश्वर ने व्यर्थ ही इतनी लम्बी जिन्दगी दी
फायदा ही क्या ऐसे जीने से,जिसमें जीवन लगे मरु सा
विश्व वीरान सा दीखता हो , जिस नर को तुम्हारा
प्यार मिले , भला वह नर, नंदनवन का द्वार कहाँ
खुलता इस धरा पर क्यों खोजता फिरे, तुम तो स्वयं
सुगंधित फूलों से भरा एक उपवन हो,प्रकृति के नियमों से
भला तुमको क्या लेना , तुम स्वयं एक प्रकृति हो
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