Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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उसे मुरव्वत1 कैसी, वादा कर , वादे से

 

उसे   मुरव्वत1  कैसी,  वादा  कर ,  वादे  से

मुकड़  जाना , यह  तो  हुस्न  की  आदत  है


समझाये  कौन  उसे, जवानी  है ए क हवा का 

झोंका,  इसे  खूँ  करने की किसमें हिम्मत  है


हम जिंदगी के तमाशे में अदम2को भूल गये,वह 

कहती,खुदनुमाई3से तुमको मिलती कहाँ फ़ुर्सत है


खु़दा  न  करे, ऐसा दोस्त मेरे दुश्मन को मिले

यह  मेरा  दोस्त  नहीं, यह तो एक मुसीबत है


गालियाँ  देकर  दुआ  भिजवाती है  वो, खत में

बन्दा-ए-खुदा4 की  यहाँ  होती  कैसी खिदमत है



1.लज्जा  2.परलोक 3.उपेक्षा 4.खुदा का बन्दा

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हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ