Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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वे सपने में भी शरमाते रहे

 


वे सपने में   भी      शरमाते  रहे

लगाने  से   दिल  घबड़ाते  रहे


कर   चाँद – तारों   की   बातें

मेरे  बेताब दिल  को बहलाते रहे


जिंदगी  कट  गई  इंतजार   में

वे  दस्तूर दुनिया का निभाते रहे


मैं  सहरा - सहरा  भटकती  रही

वे सागर की लहरों को गिनाते रहे


कभी भँवरे की बेवफ़ाई,कभी फ़ूलों 

के  दर्द की  कहानियाँ सुनाते रहे

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