वो है हमारा हिमालय
चन्द्रमा आकर शीतल रश्मि से जिसको पहले
नहलाता , सूरज करता नित उठकर जिसकी आरती
जो विश्व की धरा पर भू माप -दण्ड सा है शोभित
जिसके माथे पर हमारे देश के तीनो काल हैं अंकित
जिस पर आश्रित है, सभी सरि - सर सागर का जल
जिसका शस्य - श्याम शोभन है अंचल जो
कहलाता विविध शक्यिमय औषधियों की
वृद्दि विनायक जिसका उर है देशभक्ति से अपरिमित
जो जगा रहता सजग प्रहरी - सा, खुद पीता जहर
विश्व को पिलाता अमृत , वो है हमारा हिमालय
हमारे देश की उत्तर दिशा में, हिम किरीट-सा स्थित
जिसकी शुभ गंध मिलती औषधि , जलकण में
जो सींचता भारत भूमि को गंगा के तन में
जो वीरों के मृग - हस्ति में भरता अश्व का बल
जो थामे रहता अपने अंक में, सारा ब्रह्मांड निश्छल
जिसके वक्ष पर लहराते, सागर तरंगों-सी वनस्पतियाँ
और तरुवर जिससे होता देश का विकास निरंतर
जो भू पर ब्रह्म – स्वरूप तन धारण कर लेटा रहता
करता हमें प्रतिष्ठित विश्व में, देकर अपना शत वर
वो है निर्देहता की ज्योति लिए,हमारा हिमालय पर्वत
जिसकी ललित लताएँ छूकर बहता शीतल समीर
जिसकी सुगंध सबके उर में जगाती मदन मदिर
जो तपस्वियों , मुनियों के मन को भर देता
ऋतुराज समान देकर फल - फूल , गंध भरपूर
जो दुश्मनों का क्रोध संभालता ,खाकर सौ-सौ तीर
जहाँ रंग – विरंगे फूलों के भार से , युक्त द्रुमाली
लगती अंगार अरुण – सी , जिसके हिम सागर
में स्नान करने व्याकुल रहतीं रम्भा , उर्वशी
जहाँ ऊँघ - ऊँघकर गिर जाते बादलों के दल
जहाँ मुरझकर भी कुसुमों की सुगंध नहीं मिटती
जिसे देखने हृदय कूप से आवाज उठती जिसे देखकर
सुधा तृप्त होकर घर लौट जाती, वो है हमारा पर्वतराज
हिमालय , भारत की छत ,भारत की स्वर्गभूमि
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