Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

वो सुकूने जिंदगी कहाँ से लाऊँ

 

वो सुकूने जिंदगी  कहाँ  से  लाऊँ

जो तुमने थे  कभी  मुझको  दिये


थकान  पहुँच  चुकी  है कातिल  तक

किस्मत ने हजारों  इन्तिहा  लिये


हसरतें रहती थीं जहाँ,वहाँ रहता है गम

बुझ गये खुशियों  के  सारे  दिये


किस  दिन  न  तोहमतें  तमाशा किये 

किस रोज न अश्रु दामन को गिले किये


रोती  है  दुनिया  मेरी बदकिस्मती पर

कुछ  लोग  तो  रो-रोके नाले बहा दिये


Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ