Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

यह जग एक सपना है

 

यह   जग   एक  सपना  है
यहाँ न कोई अपना है

दो दिन के मेहमान हैं हम
चिरकाल नहीं ठहरना है

ये जो सूरज- चाँद- तारे हैं
इन्हें इसी तरह झूलते रहना है

जिस नूर से बने हैं हम
हमें उसमें जा मिलना है

जिंदगी है दो पल का,क्या
तेरा, क्या मेरा ,क्या रटना है

यहाँ सब रंग झूठा है,केवल
मृत्यु सच्चा है, अपना है

सबका मालिक एक है,सबको
उसका हुक्म भजना है


Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ