Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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यह कैसी मातृभक्ति

 

यह कैसी मातृभक्ति

तेजबहादुर की माँ, ज्ञानवती को स्वर्ग सिधारे कालांतर हो गया , लेकिन आज भी तेजबहादुर अपने बरामदे में दीवार से टंगी, माँ के चित्र को देखकर, अधीर हो उठता है | माँ के कामों का बखान करते, लगता मानो कोई पथिक रास्ता भूल गया हो | उसका ह्रदय आनंद से नहीं , एक अव्यक्त भय से काँपने लगता है | कहता है, वह आकांक्षा, जो मेरे अंधकारमय जीवन की दीपक थी, वही आकांक्षाएँ और कामनाएँ अब पूरी होने के लिए नहीं, बल्कि मुझे केवल तड़पाने के लिए मेरे साथ रहती हैं | पहले जिस आकांक्षा पर मैं प्राण अर्पण करता था, जिसकी भक्ति करता था, आज मात्र स्मृति बनी मेरे साथ रहती है | माँ की अनुपस्थिति ने मेरे सुखद कल्पना का अंत कर दिया | जब तक वो जिंदी रही, मेरी जीवन-लता, उन्हीं के चरणों के नीचे पल्लवित रहा |
एक दिन तेजबहादुर, अपने मित्र खन्ना के घर से सटे, बाग़ में टहल रहा था , तभी उसकी नजर खन्ना पर पड़ी | उसने आवाज देकर,अपने पास बुलाया, कहा--- खन्ना, मुझे तुमसे एक सलाह लेनी है |
खन्ना, नमस्ते कहते हुए बोला---बोलो तेजबहादुर ! क्या कहना चाहते हो ?
अंतरवेदना से विकल होते हुए तेजबहादुर ने कहा--- खन्ना ! आगामी शनिवार , 3 तारीख को मेरी माँ की 30वीं पुण्यतिथि है | मैं चाहता हूँ, कि तुम भी आओ |
खन्ना अपनत्व दिखाते हुए बोला--- तेज बाहादुर ! यह भी कोई कहने की बात है , अरे ! मुझे पता चला होता. तो इसके पहले भी आया होता, ज़रूर आऊँगा |
तेजबहादुर , सजल आँखों से खन्ना की तरफ देखते हुए, कहा--- खन्ना ! जब मैं अच्छी तरह जवान भी नहीं हुआ था, ईश्वर ने मुझसे मेरा वो चीज छीन लिया, जो मुझे जान से भी अधिक प्रिय थी | जो मेरे मन की रक्षक, मेरे आत्मगौरव की पोषक , धैर्य का आधार , और मेरे जीवन का अवलंब थी |
यह कहते तेज बहादुर की आत्मा, एक बार फिर से मातृभक्ति में तड़प उठी | उसका शोकाकुल ह्रदय मुरझाये फूल की तरह बिखर गया | उसने तड़पकर , खन्ना से पूछा--- खन्ना, इस विराम और विश्राम से बुझनेवाला दीपक , कुछ दिन और प्रकाशमान रहता , तो ऊपरवाले का क्या बिगड़ जाता ?
खन्ना, एक सच्चे मित्र की तरह तेजबहादुर को समझाते हुए कहा----- तेजबहादुर ,तेरी मातृभक्ति को जानकर ,दुनिया की हर माँ तुम पर गर्व करेगी |
तेजबहादुर को खन्ना के एक-एक शब्द पुष्पवर्षा के तुल्य जान पड़ा | उसने एक बार खन्ना की ओर श्रद्धापूर्ण नेत्रों से देखा, फिर बोला ----जानते हो खन्ना ! मेरी माँ , देवलोक से उतरकर आज भी नित मेरे सपनों में मुझसे मिलने आती है | आज भी वही बात दुहराती है,जो जीते जी कहा करती थी ; कहती है---बेटा ! सदा सच बोलो, झूठ की उम्र बड़ी छोटी होती है, लेकिन पता नहीं क्यों, सच बोलने में मेरा जी लड़खड़ा क्यों जाता है ?
तेजबहादुर की बात सुनकर , खन्ना के मुँह से अपने-आप निकल गया --- तो क्या यही है तुम्हारा मातृप्रेम; तुम तो माँ को दिलोजान से चाहते हो, बावजूद उनकी यह छोटी सी ख्वाहिश पूरी नहीं कर सके |
खन्ना विरक्त हो बोला --- भगवान का शुक्र है जो ऐसे मातृभक्त बेटे से मेरी मुलाक़ात , तुमसे पहले किसी से नहीं हुई थी ; कहकर जाने लगा |
तेजबहादुर लपककर खन्ना की बाँह पकड़ लिया , पूछा----खन्ना, क्या तुम मुझे धूर्त और बेईमान तो नहीं समझ रहे हो |
खन्ना मुँह बनाकर बोला – मैं कौन होता हूँ , तुमको धूर्त और बेईमान समझने वाला | तुम तो एक धर्मात्मा आदमी हो , तुम्हारे थामे तो यह धरती थमी है , नहीं तो अब तक मिट गई होती | तुम जैसे सन्तान ने ही मातृधर्म की मर्यादा को अब तक बनाए रखा है | खन्ना की कड़वी बातों को सुनकर तेजबहादुर की आँखों में आँसू भर आये |
तेजबहादुर मर्माहत होकर कहा --- खन्ना, जब उसके जीते जी उसकी ख्वाहिश पूरी नहीं की, अब तो बिल्कुल नहीं करूँगा |
खन्ना ने तीक्ष्ण स्वर में कहा ----तो अब तक जो तुम लम्बी -लम्बी डींगें हाँक रहे थे , कि “ मैं साँस लिये बिना तो ज़िंदा रह सकता हूँ , लेकिन माँ के बिना एक दिन भी नहीं तो क्या, सब झूठ था ?
सुनकर तेजबहादुर का मुखमंडल तेजमय हो गया , अभिमान से उसकी गर्दन तन गई | उसने कहा --- नहीं खन्ना, झूठ नहीं, सोलहो आने सच है | मैं आज भी माँ की कही, हर बात का पालन करता हूँ , सिवाय झूठ बोलने के | मैं झूठ छोड़ नहीं सकता , मेरी माँ , मेरी झूठ से ही ऊबकर, नित रात को मेरे सपनों में मुझे समझाने आती है | मेरा सच मुझे सदा के लिए माँ से अलग कर देगा | माँ कहती
---बेटा ! विकट से विकट परिस्थिति कभी भी आ जाए, उसका सामना, सच के सहारे करना | झूठ कभी एक जगह ठहरता नहीं, उसे लगता है, उसके चतुर्दिक शत्रु घेरे खड़े हैं | बड़े से बड़े सिद्ध-महात्मा भी उसे रंगे-सियार जान पड़ते हैं | संसार धोखे और छल से परिपूर्ण दीखता है | यहाँ तक कि उसे परमात्मा , पर से भी श्रद्धा-भक्ति लुप्त हो जाती है | मगर सच में इतनी ताकत होती है बेटा , कि वह एक अधर्मी को भी पुण्यात्मा बना देता है |
इतना बोलकर तेजबहादुर कुछ देर तक चुप रहा , फिर कातर नयन से खन्ना की ओर देखते हुए कहा --- जब रात को मेरे सपने में माँ आती है, तो दिन भर की मेरी क्लांति खुद-व-खुद दूर हो जाती है | तुम्हीं कहो, ऐसे में उस मनोहर और सुहावने सपने को सच की कठोरता और निर्दयता से गला घोंटा जा सकता है ?
माँ की सारी ममता का अनुराग, अनुराग की सारी अधीरता, उत्कंठा और चेष्टा मेरे झूठ पर ही केन्द्रित रहती है, मानो उसकी आत्मा की हार, मुझसे सच बोलवाने के लिए, इस धरती पर भटक रही है | मगर खन्ना , एक उपासक को तो प्रतिमा की ज़रूरत होती है | बिना प्रतिमा का मैं किस पर फूल चढाऊँ ? किसे गंगा जल से नहलाऊँ ? माँ को देखे बिना मेरा जीवन , आँख के बिना, मुख सूना हो जायगा |
खन्ना, तेजबहादुर की दास्तां सुनकर इस कदर दुखी हो उठा कि उसने अपने दोनों हाथ , तेजबहादुर की तरफ प्रेमाधिक्य से फैला दिया, कहा--- अब तुम्हारा विरोध करने लायक मैं नहीं बचा , मैं तुम्हारा प्राणहारी नहीं बनना चाहता | लेकिन हाँ , इतना तो अवश्य कहूँगा, माँ के प्रति जिस दिल में इतनी प्रबल प्रेमाकांक्षा है, उस दिल का दमन खुद तुमको बनानेवाला ईश्वर भी नहीं कर सकता | तुम्हारे मातृप्रेम की बहुमूल्यता को देखकर , तुम पर जान देने को दिल करता है | अब तक मैं तुमको अपराधी और मिथ्यक मान रहा था | मुझे माफ़ कर देना , ईश्वर करे, माँ के प्रति तुम्हारा प्यार गंगाजी के जल की तरह बढ़ता रहे |



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